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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ५ सू.६ नैरयिकाणां पर्यायनिरूपणम् ६२७ एतेनार्थेन गौतम ! एवमुच्यते-जधन्यगुणकालकानां नैरयिकाणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, एवमुत्कृप्टगुणकालकोऽपि, अजवन्यानुत्कृष्टगुणकालकोऽपि एवञ्चैव, नवरं कालवर्णपर्यवैः पट्स्थानपतितः, एवम् अवशेपाश्चत्वारो वर्णाः, द्वो गन्धौ, पञ्चरसाः, अष्टौ स्पर्शाः भणितव्याः, जघन्याभिनिवोधिक ज्ञानीनां भदन्त ! नैरयिकाणां कियन्तः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः ? गौतम ! जघन्याभिनिवोधिकज्ञानिनां नैरयिकाणामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थेन भदन्त ! एवमुच्यते-जघन्यातीन दर्शनों से (छट्ठाणवडिए) पट् स्थान पतित है (से एएणटेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-जहण्णगुण कालगाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) इस कारण हे गौतम ! ऐसा कहा है कि जघन्यगुण काले नारकों के अनन्त पर्याय है (एवं उकोसगुणकालए वि) इसी प्रकार उत्कृष्ट गुण काला नारक भी (अजहण्णमणुकोसगुण कालए वि) मध्यसगुण काला भी (नवरं) विशेष यह कि (कालवण्णपज्जवेहिं) छहाणवडिए) ऋष्णवर्ण पर्यायों से पट स्थान पतित है (एवं अवसेसा चत्तारि वण्णा) इसी प्रकार शेष चारों वर्ण (दो गंधा) दो गंध (पंच रसा) पांच रस (अफासा) आठ स्पर्श (भाणियव्या) कहने चाहिए। (जहण्णाभिणियोहियनाणीणं गंते ! नेरइयाणं केवड्या पज्जवा पण्णता) भगवन् ! जघन्य आभिनिवोधिकज्ञानवाले नारकों के कितने पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! जहण्णाभिणिबोहियनाणीणं णेरझ्याणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता (गौतम ! जघन्य आभिनियोधिक ज्ञानी नारकों के अनन्त पर्याय काहे हैं (से केणढेणं भंते ! एवं बुच्चइ४शनाथी (छट्ठाणवडिए) षट् स्थान पतित छ (से एएणद्वेणं गोयमा । एवं वुच्चइ जहण्णगुणकालगाणं नेरइयाणं अणंता पज्जवा पण्णत्ता) 2 0 3 गौतम ! मे "यु छ , धन्य गुण ४॥ नाना मनन्त पर्याय छे (एवं उक्कोसगुणकालए वि) मे शते गुष्य 1 ना२४ पए (अजहण्णमणुकोसगुणकालर वि) मध्यम गु ४ (नवरं) विशेष से छे : (कालवण्णपज्जवेहिं छट्टणवडिए) ए पना पर्यायाथी ७ स्थान पतित छ (एवं अवसेसा चत्तारिवण्णा) से प्रारे शेप या२ प (दो गंधा) मे च (पंच रसा) पाय २ (अढ फासा) 06 २५२ (भाणियब्या) ४ा नये. (जहण्णाभिणिबोहियनाणीणं भंते । नेरइयाणं केवईया पज्जवा पण्णत्ता) હે ભગવન્! જઘન્ય આભિનિધિક જ્ઞાનવાળા નારકેના કેટલા પર્યાય કહ્યા છે (गोयमा । जहण्णाभिणियोहियनाणी नेरल्याणं अणंता पज्जया पण्णता) गीतम! अन्य यालिनिमाधिज्ञानी नाना अनन्त पर्याय ४ा है (कणणं भंते !)
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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