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प्रमेयबोधिनी टीका पद ५ सू.५ पृथ्वीकायिकादीनां पर्यायनिरूपणम् ५८३ न्ता पर्यवा ! प्रज्ञप्ताः, तत् केनार्थन भदन्त ! एवमुच्यते पृथिवीकायिकानामनन्ताः पर्यवाः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! पृथियोकायिकः पृथिवीकायिकस्य द्रव्यार्थतया तुल्यः, प्रदेशार्थतया तुल्यः, अवगाहनार्थतया स्याद्धीनः, स्वात्तुल्यः, स्यादभ्यधिकः, यदा हीनः असंख्येयभागहीनो वा, संख्येय मागहीनो वा, संख्येयगुणहीनो वा, असंख्ये. यगुणहीनो वा, अथाभ्यधिकः असंख्येयभागाभ्यधिको वा, संख्येयभागाभ्यधिको भगवन् ! पृथिवीकायिकों के कितने पर्याय कहे हैं (गोयमा ! अणंता पज्जवा पण्णत्ता) हे गौतम ! अनन्त पर्याय कहे हैं (सेकेणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-पुढविकाझ्याणं अणंता पज्जका पण्णता ?) भगवन् ! किस हेतु से ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिकों के अनन्त पर्याय कहे हैं ? (गोयमा ! पुढविकाइए पुढविज्ञाइयस दवयाए तुल्ले, पएसट्टयाए तुल्ले) गौतम ! एक पृथ्वीकाधिक दूसरे पृथ्वीकायिक से द्रव्य की अपेक्षा तुल्य है, प्रदेशों की अपेक्षा से तुल्य है (ओगाहणट्टयाए सिय हीणे सिय तुल्ले सिय अमहिए) अवगाहना की अपेक्षा से स्यातू हीन है, स्यात् तुल्य है, स्यात् अधिक है (जइ होणे) यदि हीन है (असंखेज्जहभाग होणे वा संखेज्जइलाग हीफे वा, संखेज्जगुण होणे वा असंखेज्जगुण हीणे वा) असंख्यातनाम हीन है या संख्यात भाग हीन है या संख्यातगुण हीन हे अशा असंख्यातगुण हीन है (अह अभहिए) अगर अधिक है (असंखिज्जइभाग अन्भहिए वा संखिज्जइभाग अभहिए बा, संखिज्जगुण अन्महिए वा, असंखिज्ज पृथ्वी४ायिन सा पर्याय ह्या छ ? (गोयमा । अणता पज्जवा पण्णत्ता) डे गौतम ! -मनन्त पर्याय ॥ छ (से केणदेणं भंते । एवं वुचइ पुढविकाइयाणं अणंता पज्जवा पण्णता ?) भगवन् । ४॥ तुथी सेम ४उपाय छ पृथ्वीयिन अनन्त पर्याय ४ा छ ? (गोयमा | पुढवीकाईए पुढविकाइयस्स दवट्ठयाए तुल्ले, पएसठ्ठयाए तुल्ले) हे गौतम । ये पृथ्वीय गीत पृथ्वीt[५४थी द्रव्यनी अपेक्षा तुल्य छे. प्रशानो गपेक्षागे तुक्ष्य छ (ओगाहणट्ठयाए सिय हीगे सिय तुल्ले सिय अभहिए) मनानी अपेक्षा स्यात् हीन छे, त्यात् तुल्य छे. स्यात् मथि छे (जइ हीणे) ले डीन छ (असंखेज्जइभाग हीणे वा संखेज्जइभागहीणेवा संखेज्ज गुण होणे वा असंखेजगुण हीणे वा) असण्यात ભાગ હીન છે અગર સંથાત ભાગ હીન છે અગર સંખ્યાતગુણ હીન અથવા मसण्यातगुरु डीन छ मगर (अह अमहिए) ने शधि छ (असखेजभाग अन्भहिर वा, संखेजभाग अभहिए वा, ग्विज गुण अभहित या, अमंखिन्ज गुण