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प्रमेयबोधिनी टीका पद ४ सू.१० ग्रैवेयकादिदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५३५ अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एकोनत्रिंशत् सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतौनानि, उत्कृष्टेन त्रिंशत् सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तेनानि उपरिमोपरिमौवेयकदेवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन त्रिंशत् सागरोपमाणि, उत्कृप्टेन एकत्रिंशत् सागरोपमाणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृप्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन त्रिंशत् सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उनतीस सागरोपम, उत्कृष्ट तीस सागरोपन की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तमुहर्त (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा जहण्णेणं एगूणतीसं सागरोवमा अतोमुहुत्तणाई, उक्कोसेणं तीसं सागरोवमाई तोमुहत्तणाई) हे गौला ! जघन्य अन्तर्मुहुर्त कम उनतीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्गत कम तीस सागरोपम की
(उवरिमउवरिम गेवेज्जगदेवाणं पुच्छा ?) उपरितन-उपरितन ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं तीसं सागरोवमाई, उक्कोलेणं एक्कतीसं सागरोवराई) हे गौतम ! जघन्य तीस सागरोपम की, उत्कृष्ट इकतीस सागरोपन की (अपज्जत्तयाणं पुच्छा) अपर्याप्तक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अतोमुहत्तं) हे गौतम ! जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! सागरोवमाई) हे गौतम! धन्य मागणुकीस सागरोपमनी अट त्रीस सारोपभनी ४डी छे. (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्तवानी स्थिति सी छ.? (गोयमा जहण्णेणं वि उक्कोसेणं वि अंतोमुहुत्तं) गौतम । धन्य मने Gष्ट मन्तभुतानी राय छे. (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तवानी स्थिति सी छे ? (गोयमा ! जहण्णेणं एगूणतीसं साग रोवमाइं अंतोमुहुत्तणाई, उक्कोसेणं तीसं साग. रोवमाइं अंतोमुहत्तणाई) हे गौतम । नन्य अन्तभुत माछा मागणुत्रीस સાગરોપમની ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત ઓછાત્રીસ સાગરેપમની હોય છે
(उवरिम-उवरिम गेवेज्जगदेवाणं पुच्छा ?) परितन-परितन अवेयवानी स्थिति सी ४९स छ ? (गोयमा जहण्णेणं तीसं सागरोवमाइं, उकोसेणं एक्कतीसं सागरोवमाई) गौतम | धन्य त्रीस साग।५मनी, घट येत्रीस साग।. पभनी उस छ. (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्यास हेवोनी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्त) हे गीतम ! धन्य मने Eve