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________________ प्रमैयबोधिनी टीका पद ४ सू.१० त्रैवेयकादिदेवानां स्थितिनिरूपणम् ५३३ पमाणि, अन्तर्मुहतोनानि, उत्कृष्टेन सप्तविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहनों नानि, मध्यमोपरिमौवेयकदेवानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन सप्तविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन अष्टाविंशतिः सागरोपमाणि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहुर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतस ! जघन्येन सप्तविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उत्कृष्टेन अष्टाविंशतिः सागरोअन्तर्मुहर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की कितनी ? (गोयया जहण्णेणं छन्वीसं सागरोवमाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तावीसं सागरोवमाइ अंतोमुहत्तणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्युहर्त कम छब्बीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम सताईस सागरोपम की। ___ (मज्झिम उवरिमगेविज्जगदेवाणं पुच्छा ?) मध्यम उपरितन ग्रैवेयक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं सत्तावीसं सागरावमाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइ) हे गौतम ! जघन्य सताईस सागरोपम की, उत्कृष्ट अट्ठाईस सागरोपम की (अपज्जत्त. याणं पुच्छा?) अपर्याप्तक देवों की कितनी ? (गोयमा ! जहाणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहाणेण सत्तावीसं सागरोवमाइ अंतोमुहत्तणाई, उक्कोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम! ५ मन्तभुतनी छ. (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तीनी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं छब्बीसं सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तणाइ, उक्कोसेणं सत्तावीसं साग-- रोवमाइं अंतोमुहुत्तणाई) 3 गौतम ! धन्य मन्तकृत मा ७०वीस सासરેમની, ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા સત્યાવીસ સાગરોપમની હોય છે (मज्झिम उबरिम गेविज्जगदेवाणं पुच्छा ?) मध्यम परितन अवय ठेवानी स्थिति सी छ ? (गोयमा | जहणेणं सत्तावीसं सागरोवमाई, उकोसेणं अट्ठावीसं सागरोवमाइं) गौतम | धन्य सत्यावीस सागरे।५मनी, इट मध्यावास सागरोपमनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ? अपर्याप्त हेवानी स्थिति सी छ ? (गोयमा ! जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अन्तोमुहुत्तं) गौतम | धन्य ५५ मने ट पy मन्त इतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पतिवानी स्थिति सी छ १ (गोयमा । जहण्णेणं सत्तावीसं सागरोवमाई, अंतोमु हुत्तणाई, उक्कोसेगं अट्ठावीसं सोगरोदमाई अंतोमुत्तणाई) गौतम । ०४६न् तभुत मे ४ा २२६१२५ सा७.३१५३-1, ઉત્કૃષ્ટ અન્તમુહૂર્ત ઓછા અઠયાવીસ સાગરેપની હોય છે
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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