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अंशापनासूत्र गौतम ! जघन्येन एकविंशतिः सागरोपमाणि, उत्कृष्टेन द्वाविंशतिः सागरोपमानि, अपर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृप्टेनापि अन्तर्मुहर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन एकविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूतोंनानि, उत्कृष्टेन द्वाविंशतिः सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तानानि ____टीका-व्याख्या सुगमा ।। सू० ९॥ पुच्छा ?) पर्याप्तक देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा ! जहण्णेणं वीसं सागरोवमाई अंतोमुहत्तणाई, उक्कोसेणं एगवीसं सागरोवमाई अंतोमुत्तणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त कम वीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तमुहर्त कम इक्कीस सागरोपस की। ___(अच्चुए कप्पे देवाणं पुच्छा ?) अच्युत कल्प में देवों की स्थिति कितनी ? (गोयमा! जहणेणं एगवीसं सागरोधमाई, उक्कोसेणं बावीसं सागरोवमाई) हे गौतम! जघन्य इक्कीस सागरोपम की, उत्कृष्ट बाईस सागरोपम की (अपजत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त देवों की स्थिति की पृच्छा ?) (गोयमो ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतो. मुहत्त) हे गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहर्त की (पजत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तक देवों की स्थिति की पृच्छा ? (गौयमा ! जहण्णेणं इक्कवीसं सागरोवलाई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं वावीसं 'सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) हे गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम इक्कीस सागरोपम की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम वाईस सागरो'पम की। ॥९॥
टीकार्थ-व्याख्या स्पष्ट है ॥९॥ तूणाई उक्कोसेणं एगवीसं सागरोवमाइ अंतोमुहुत्तूणाई) गौतम धन्य मन्तइत ઓછા વીસ સાગરોપમની, ઉત્કૃષ્ટ અન્તર્મુહૂર્ત એછા એકવીસ સાગરોપમની. __(अच्चुए कप्पे देवाण पुच्छा ?) अच्युत४३५मा हेवेनी स्थिति सी ? (गोयमा । जहण्णेण एगवीसं सोगरोवमाई उक्कोसेणं बासीसं सागरोवमाई) गौतम ! धन्य २४वीस सागरोयमनी, उत्कृष्ट मापीस सागपभनी (अपज्जत्तयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त हेवानी स्थितिनी छ ? (गोयमा ! जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुर्त) गौतम ! धन्य ५ मन कृष्ट ५] मन्तभुइतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्त हेवानी स्थितिनी छ ? (गोयमा । जहण्णणं हक्कवीस सागरोवमाई अतोमुहत्तणाई, उक्कोसेणं बाबीसं सागरोवमाइं अतोमहत्तूणाई) गौतम I ruन्य मन्तत माछ। पीससा५मनी, अष्ट અન્તમુહૂર્ત ઓછા બાવીસસાગરોપમની માસૂલા
टीआय-व्याच्या २५७८ छ.