________________
४८४
प्रशापनासूत्र पूर्वकोटी अन्तर्मुहूर्तोना, चतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि, अपर्याप्तक चतुपदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि पल्योपमानि अन्तर्मुहूतोनानि, संमूच्छिम चतुष्पद स्थलचर पञ्चन्द्रियतिर्यग्योनि कानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन चतुरशीतिवर्षसहस्राणि,
(चउप्पयथलयर पंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंचों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओचमाई) जघन्य अन्तमुहूर्त, उत्कृष्ट तीन पल्योपम की (अपज्जत्तय चउप्पयथलयरपंचिंदिय तिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त चउप्पद' स्थलचर पंचेन्द्रिय • तिर्यचों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्खहर्त की (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्याप्तकों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहुतूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम तीन पल्योपम की है। ___ (संमुच्छम चउप्पय थलयरपंचिंदिय तिरिवखजोणियाणं पुच्छा?) संमूर्छिम चतुष्पद स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्त , उस्कोलेणं चउरासी
(चउप्पयजलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) यतु०५६ २०१यर ५थेन्द्रिय तिय यानी स्थितिनी छ ? (गोयमा ) गौतम । (जहण्णेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं तिन्नि पलिओवमाइं) धन्य मन्ततः , ष्ट अy पन्यापमनी (अपज्जत्तय चउप्पय थलयरपंचिदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) અપર્યાપ્ત ચતુષ્પદ સ્થલચર પચેન્દ્રિય તિર્યંચોની સ્થિતિની પૃચ્છા? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं बि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) धन्य मने SYष्ट ५ मन्तभुइतनी (पज्जत्तयाणं पुच्छा ?) पर्यासहीनी स्थितिनी छ। (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण तिन्नि पलिओवमाई अंतोमुहत्तणाई) धन्य मन्तभुत उत्कृष्ट मन्तभुत माछा पक्ष्या५मनी
(समुच्छिम चउप्पय थलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा ?) सभूछिभ यन्तु५६ स्थसय२ ५न्द्रिय तिय यानी स्थितिनी २७ ? (गोयमा !) 3 गौतम ! (जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं चारासी वाससहस्साई) धन्य