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________________ प्रबोधिनी टीका पद ४ सू. ०३ पृथिवीकायादीनां स्थिति निरूपणम् ૪૬ जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, वादरतेजः कायिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि रात्रिन्दिवानि, अपर्याप्तक वादरतेजः कायिकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येनापि उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तकानां पृच्छा, गौतम ! जघन्येन अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेन त्रीणि रात्रिन्दिनानि अन्त | वायुकायिकानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! (सुमते उकाइयाणं ओहियाणं अपज्जन्त्तयाणं पज्जत्तयाण य पुच्छा ?) सूक्ष्म तेजस्कायिक औधिकों, अपर्याप्तों और पर्याप्तों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम! ( जहणेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त ) सूक्ष्म तेजस्काय के समुच्चय, अपर्याप्तकों और पर्यातकों की स्थिति अन्तर्मुहूर्त्त की है । ( घायर तेउकाइयाणं पुच्छा ?) बादर तेजस्कायिकों की स्थिति पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम! (जहण्णेणं अंतोमुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि राइ दियाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त उत्कृष्ट तीन रात्रि - दिवस (अपज्जन्त्तय बायरते उकाइयाणं पुच्छा ?) अपर्याप्त बादर तेजस्कायिकों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम! ( जहण्णेण विक्कोसेण वि अतोमुहुत्त ) जघन्य और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त की (पज्जत्ताणं पुच्छा ?) पर्याप्तों की स्थिति की पृच्छा ? (गोयमा) हे गौतम! (जहणेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं तिन्नि राइ दियाइ अंतोमुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त्त की, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त्त कम तीन रात्रि - दिवस की । (सुहुम तेउकाइयाणं ओहियाणं अपज्जत्तयाणं पज्जत्तयाणं य पुच्छा ?) सूक्ष्मतेनस्सायि४ सोधि, अपर्याप्तो भने पर्यासोनी स्थितिनी पृग्छ ? (गोयमा !) हे गौतम! (जहण्णेणं वि उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं ) सूक्ष्म तेनायिना सभु स्थय, अपर्याप्त। भने पर्यासअनी स्थिति अन्तर्मुहूर्तनी छे. (वायर तेजकाइया णं पुच्छा) माहर तेन्स्ायिनी स्थितिनी पृच्छा ? (गोयमा !) हे गौतम! (जहण्णेणं अ ंतोमुडुत्तं, उक्कोसेणं तिन्नि राई दियाई) ४धन्य अन्तर्मुहूर्त उत्ष्ट भ रात्रि हिवस (अपज्जत्तय वायर तेउकाइयाणं पुच्छा) अपर्याप्त व्याहरतेस्ठायिनी स्थितिनी पृरछा (गोयमा !) हे गौतम! (जहणेणं वि उक्कोसे वि अंतोमुहुत्तं) ४धन्य मने उद्दृष्ट या अन्तर्मुहूर्तनी (पज्जत्ताणं पुच्छा !) पर्याप्तोनी स्थितिनी पृथ्छा ? (गोयमा ) हे गौतम! (जहण्णेणं अतोमुहुत्तं उक्कोसेणं तिन्नि राईंढियाई अतोमुहुत्तूणाई ) ४धन्य अन्तर्मुहूर्तनी, उत्ष्ट અન્તર્મુહૂત ઓછા ત્રણ રાત્રિ દિવસની
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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