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________________ ४५४ प्रशोपनासूत्र प्रज्ञप्ता ? गोतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम्, उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्, पर्याप्तक भवनवासिनां देवानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ? जघन्येन दशवर्पसहस्राणि अन्तर्मुहूर्तोनानि, उत्कृष्टेन सातिरेकं सागरोपमम् अन्तर्मुहूतोंनम्, भवनवासिनीनां भदन्त ! देवीनां कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! भगवन् ! भवनवासी देवों की कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवर्म) हे गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट कुछ अधिक एक सागरोपम की (अपज्जत्तय भवणवासीणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) अपर्याप्तक भवनवासी देवों की भगवन् ! कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पज्जत्तय भवणवासीणं देवाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) पर्याप्तक भवनवासी देवों की भगवन् ! कितने काल की स्थिति कही है ? (गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई, उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवमं अंतोमुत्तूणं) गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष, उत्कृष्ट कुछ अधिक सागरोपम में अन्तमुहूर्त कम। (भवणवासिणीणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) भगवन् ! भवनवासिनी देवियों की स्थिति कितने काल तक कही है ? वाससहस्साई उक्कोसेणं साइरेगं सागरोवम) 3 गौतम ! धन्य ४श २ वर्षनी अष्ट xiss विशेष मे४ सागपमनी (अपज्जत्तय भवणवासीणं भंते ! देवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) मर्यात सपनवासी तुवानी भगवन्! ४८॥ ४सुधी स्थिति ४ी छे ? (गोयमा ) 3 गौतम (जहण्णेण वि अंतोमुहुत्त, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) धन्य ५ मन्तभुत, कृष्ट ५ मन्तभुत (पज्जत्तय भवणवासिणं देवाणं भंते । केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) पर्याप्त भवनवासी हेवानी लान् ! सानी स्थिति ४डी छे ? (गोयमा ! जहण्णे णं दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तूणाई उक्कोसेणं सागरोवमं अंतोमुहत्तूणं) गौतम | જઘન્ય અન્તર્મુહૂર્ત ઓછા દશ હજાર વર્ષ, ઉત્કૃષ્ટ કાઈક વિશેષ સાગરોપમમાં અન્તર્મુહૂર્ત એછા છે. (भवणवासिणीणं भंते ! देवीणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) भगवन् ! भवनवासिनी लियोनी स्थिति डेटा समय सुधी ही छ ? (गोयमा ! जहः
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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