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________________ ४५६ प्रज्ञापनासूत्रे , कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहूर्तम्: पर्याप्तकदेवानां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन दशवर्षसहस्राणि अन्तमुहूर्तेनानि, उत्कृष्टेन त्रयस्त्रिंशत् सागरोपमाणि अन्तर्मुहूर्तानानि, देवीनां भदन्त । कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! देवों की स्थिति की वक्तव्यता शब्दार्थ- (देवाणं भते ! केवइयं कालं ठिई पणती ?) भगवन ! देवों की कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा ! जहणेण दसवाससहरसाई,, उक्को सेणं तेत्तीसं सागरोवमाइ ) गौतम ! जघन्य दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट तेतीस सागरोपम की. । - ५ '( अपज्जत्त य देवाणं भते ! केवइयं कालं टिई पण्णत्ता ?) भग HTT अपयति देवों की कितने 'काल तक स्थिति कही है ? (गोर्यमा जगणं वि तो मुद्दत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहत) गौतम ! जघन्य भी: अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त्त तक) (पज्जतग देवाणं भते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) भगवन् ! पर्याप्तक देवों की स्थिति कितने काल तक कही है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहणेण दसवास सहस्साई अतोमुहणाई, उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाइ अंतो मुहुत्तूणाइ) जघन्य अन्तर्मुहुत्ते कम दस हजार वर्ष की, उत्कृष्ट अन्त मुह कम, तेतीस सागरोपम की । ** ; (देवीण भते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) भगवन् ! देवियों વેાની સ્થિતિની વક્તવ્યતા हाथ (वाणं भंते! केवईय' कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! देवानी भेट्दा- सभ्य सुधी स्थिति उसी छे ? (गोयमा ! ज़हण्णेण दस, वाससहस्साई उकोसेण तेत्तीस सागरोबमाई) डे गौतम | धन्य हरा उभर वर्षानी अने ઉત્કૃષ્ટ ક્ષત્રીસ સાગરોપમની દા (अपजत्तय 'देवाणं भते केवइयं कालं ठिई पण चा) हे भगवन् । अययस देवानी इंटला वर्षो सुधीनी स्थिति उडी है? (गोयमा । जहणेणं वि अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं) गौतम । धन्यथी पण अन्तर्मुर्ति सुधी अन सृष्टथा पशुं मेन्तर्मुहूर्त सुधी (पज्जत्तंग देवाणं मैंते ।' केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) भगवन पुर्या देवानी स्थिति उसा आज सुधी उड़ी है ? (गोयमा ') डे' गौतम । ' (जहण्णेण दसवाससहस्साई अंतोमुहुत्तणाई उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमाई अंतोमुहुत्तणाई ) ४धन्य अन्तर्मुहूर्त मोछा इस हुनर "वर्षनी उत्ष्ट, अन्तर्मुहूई ओछा तेत्रीस सागरापभनी 1: । (देवीणं भ'ते! केवइयं कालं । ठिई पण्णत्ता ? ) लगवन्न हेवियानी स्थिति
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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