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________________ ४४४ प्रापनासर्व पमाणि अन्तर्मुहूतौनानि, पङ्कप्रभा पृथिवी नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येन सप्तसागरोपमाणि, उत्कृष्टेन दश सागरोपमाणि, अपर्याप्तकपङ्कप्रभा पृथिवी नैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! जघन्येनापि अन्तर्मुहूर्तम् उत्कृष्टेनापि अन्तर्मुहुर्तम् पर्याप्तकपङ्कप्रभा पृथिवीनैरयिकाणां भदन्त ! कियन्तं कालं स्थितिः प्रज्ञप्ता ? गौतम ! अन्तर्मुहूर्त कम (उक्कोसेणं सत्तसागरोवमाई) उत्कृष्ट सात सागरोपम (अंतोमुहुत्तूणाई) अन्तर्मुहर्त कम । - (पंकप्पभा पुढवीनेरइयाणं भते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! पंकप्रभा पृथ्वी के नारकों की कितने काल तक स्थिति कही गई है ? (गोयमा) हे गौतम ! (जहाणेणं सत्त सागरोवमाई) जघन्य सात सागरोपम (उक्कोसेणं दस सागरोवमाई) उत्कृष्ट दश सागरोपम (अपज्जत्त य पंकप्पभा पुढवीनेरयाणं भते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) अपर्याप्त पंकप्रभा पृथ्वी के नारकों की भगवन् ! कितने कोल तक स्थिति कही है ? (गोयमा ! जहण्णेण वि अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्त) जघन्य भी अन्तर्मुहर्त, उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त (पज्जत्तय पंकप्पभा पुढवीनेरइयाणं भंते ! केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) पर्याप्त पंकप्रभा पृथ्वी के नारकों की भगवन् ! कितने काल तक स्थिति कही है ? (गोयमा जहण्णेणं सत्त सागरोवमाइं अंतोमुहुत्तूणाई) जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम सात सागरोपम (उकोसेणं दससागरोवमाई अंतोमुहुत्तणाई) उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम । सागरोवमाई) धन्य त्र] सागरीयम (अंतोमुहुत्तणाई) मन्तभुत माछा (पंकापभा पुढवीनेरइयाणं भंते । केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता) मापन् ! ५.असा पृथ्वीना नारीनी 32 आण सुधी स्थिति ४सी छे ? (गोयमा !) गौतम (जहण्णेणं सत्तसागरोवमाई) धन्य सात साग३।५म (उक्कोसेणं दस सागरोपमाई) उत्कृष्ट ४० सागरोपम (अपज्जत्तय पंकप्पभा पुढवी नेरइयाणं भंते केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) अपर्यास ५४मा पृथ्वीना नानी मान् teen समय सुधा स्थिति ही छ ? (गोयमा ! जहण्णेण वि अंतो मुहत्तं उक्को सेण वि अंतोमुहुत्त) धन्यथी ५ मन्तभुत, कृष्टथी पशु मन्ततः (पज्जत्तय पंकप्पभा पुढवी नेरइयाणं भंते । केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता ?) पर्याप्त પંકપ્રભા પૃથ્વીના નારકેની હે ભગવન ! કેટલા કાળ સુધી સ્થિતિ કહી છે ? (गोयमा जहण्णेणं सत्त सागरोपमाइं अंतोमुहुत्तणाइं) धन्य मन्तभुत माछ। सात स यम (उक्कोसेणं दस सागरोपमाइं अंतोमुहुत्तूणाइ) Gree -त.
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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