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________________ प्रेमैयबोधिनी टीका पद ३ सू.२६ धर्माधर्मास्तिकायादि जीवाल्पबहुत्वम् २४३ गुणः, सचैव प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणः, पुद्गलास्तिकायो द्रव्यार्थतया अनन्तगुणः, सचैव प्रदेशार्थतया असंख्येयगुणः, अद्धासमयो द्रव्यार्थप्रदेशार्थतया अनन्तगुणः, आकाशास्तिकायः प्रदेशार्थतया अनन्तगुणः, द्वारस् २१ ॥सू० २६॥ टीका-अथास्तिकायद्वारमधिकृत्य अल्पत्वादिकं प्ररूपयितुमाह-'एएसिणं भंते !' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! एतेषां खल 'धम्मत्थिकाय अधम्मत्थिकाय जीवत्थिकाय पोग्गलत्थिकाय अद्धासमयाणं' धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकायआकाशास्तिकाय-जीवास्तिकाय-पुद्गलास्तिकाय अद्धासमयानां मध्ये 'दव्वट्ठयाए' दोन्नि वि तुल्ला) धर्मास्तिकाय और अधर्मास्तिकाय ये दोनों तुल्य हैं (पएसट्टयाए असंखेजगुणा) प्रदेशों की अपेक्षा असंख्यातगुणा हैं (जीवत्थिकाए व्वयाए अणंतसुणे) जीवास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुणा हैं (से चेव पएसयाए) वही प्रदेशों की अपेक्षा (असंखेजगुणे) असंख्यातगुणा हैं (पोग्गलस्थिकाए दवट्टयाए अणंतशुणे) पुद्गलास्तिकाय द्रव्य की अपेक्षा अनन्तगुणा है (से वेव पएसट्टयाए) वही प्रदेशों की अपेक्षा (असंखेजगुणे) असंख्यातगुणा है (अद्वासमए) अद्धासमय (बपएलट्टयाए अणंतगुणे) द्रव्य और प्रदेशों की अपेक्षा अनन्तगुणा है (आगासत्थिकाए) आकाशास्तिकाय (पएसट्टयाए) प्रदेशों की अपेक्षा (अणंतगुणे) अनन्तगुणा हैं । अब अस्तिकाय की अपेक्षा से अल्पबहुख की प्ररूपणा करते हैंटीकार्थ-श्री गौतमस्वामी प्रश्न करते हैं-हे भगवन् ! इन धर्मास्तिअधम्मत्यिकाए य एएणं दोन्नि वि तुल्ला) धर्मास्तिय मन मस्तिय से मन्ने तुल्य छ (पएसटूठयाए अस खेज्जगुणा) प्रशानी अपेक्षा अध्यात. गाछे (जीवत्यिकाए दव्वट्ठयाए अणंतगुणे) स्तिय द्रव्यनी अपेक्षा मनन्तगछे (से चेव पएसट्ठयाए) ते प्रशानी अपेक्षाये (असंखेज्जगुणे) मसच्या छ (पोग्गलस्थिकाए व्वट्ठयाए अणंतगुणे) पुसमातिय द्रव्यनी मपेक्षाथी मनता। छे. (से चेव पएसयाए) ते प्रशानी अपेक्षाथी (असंखेज्जगुणे) मसभ्यता छ (अद्धासमए) मधासमय (वठ्ठपएसट्टयाए अणंत. गुणे) द्रव्य मने प्रशानी मपेक्षाये मनन्तछे (आगासस्थिकाए) माशास्तिय (पएसठ्ठयाए) प्रशानी अपेक्षाये (अणंतगुणे) मनन्त छ હવે અસ્તિકાયની અપેક્ષાએ અલ્પ બહુત્વની પ્રરૂપણ કરે છે ટીકાર્ય–શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન્ ! આ ધર્માસ્તિકાય,
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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