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________________ प्रमेयवोधिनी टीका पद ६ सू.१४ असुरकुमारााद्वर्तनानिरूपणम् १११५ पृथिवीकायिकेषु उपपद्यन्ते, अपर्याप्त मवादरपृथिवीकायिकेषु उपपद्यन्ते ? गौतम ? पर्याप्तकेषु उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकेषु उपपद्यन्ते, एवं अव्यनस्पतिप्यपि भणितव्यम्, पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकमनुष्येषु च यथा नैरयिकाणाम्-उद्वर्तना संमूच्छिमवर्जा तथा भणितव्या, एवं यावत्-स्तनितकुमाराः, पृथिवीकायिकाः खलु भदन्त ! अनन्तरम् उद्धृत्य कुत्र गच्छन्ति, कुत्र उपपद्यन्ते ? किं नैरयिकेषु यावत् -देवेषु-गौतम ? नो नैरयिकेपु, तिर्यग्योनिकमनुष्येषु उपपद्यन्ते, नो देवेषु विकाइएस्सु) क्या पर्याप्त बादरपृथ्वीकायिकों में (उववज्जति) उत्पन्न होते हैं (अपज्जत्तयबायरपुढविकाइएसु उववज्जति) अपर्याप्त बाद पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं (गोयमा ! पज्जत्तए उववज्जंति) गौतम ! पर्याप्तकों में उत्पन्न होते हैं (नो अप अपज्जत्तएमु उववजंति) अपर्याप्तकों में उत्पन्न नहीं होते (एवं) इसी प्रकार (आउवणस्सइसु वि भाणियवं) अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों के विषय में भी कहना चाहिए (पंचिंदिय तिरिक्खजोणियमणुस्सेसु य) पंचेन्द्रिय तिर्यचों और लनुष्यो में (जहा)जिस प्रकार (नेरइयाणं) नारकों की (उव्वदृणा)उद्वर्तना (समुच्छिमवज्जा) संमूछिमों को छोड कर) तहा भाणियव्वा) उसी प्रकार कहना चाहिए (एवं जाव थणियकुमारा) इसी प्रकार स्तनित कुमारों तक ___(पुढविकाइयाणं भते ! अणंतरं उध्वहित्ता कहिँ गच्छंति ?) पृथ्वीकायिक सीधे निकलकर कहां जाते हैं ? (कहिं उववज्जति) कहां उत्पन्न होते हैं ? (किं नेरईएसु जाव देवेसु) क्या नारकों में यावत् देवों में ? थाय छ ? (अपज्जत्तयवायर पुढविकाइएसु उबवज्जति) अपर्याप्त ॥४२ पृथ्वी. 4Hi surt थाय छ ? (गोयमा ! पन्जत्तपसु उववज्जति) गौतम | पर्याप्त भां अपन्न थाय छे. (नो अपज्जत्तएसु उववज्जति) २५ नयी थता (एवं) से प्रारे (आउत्रणस्सइसु वि भाणियव्व) २५५४॥यि। भने वनस्पति पिछीना विषयमा ५१ ४ नये. (पंचिं दियतिरिक्खजोणिय मणुस्सेसु य) पश्यन्द्रिय तिय यां मने मनुष्यमा (जहा) २ ते (नेरइयाणं) नानी (उलट्टणा) वतना (संमुच्छिम वज्जा) भूछिभने छीन (तहा भाणियव्वा) से मारे ४ ल . (एवं जाव थणियकुमरा ?) मे हारे સ્તનિકકુમાર સુધી. (पुढविकाइयाण भंते ! अणंतरं उबद्विताकहिं गच्छन्ति ?) लायन् ! पृथ्वी४यि४ सीधा निजीन ४i nय छ : (कहि उववज्जति ?) ५५ ५न्न थाय छ ? (ति ने इनु जान देने नु) शु नसमा या हेवेना (गोयमा ! (नो
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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