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________________ १०६० | ‘লালুর্গ रस्-अपर्याप्तकेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदा देवेभ्य उपपद्यन्ने, किं भवनवासि वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकस्य उपपबन्ते ? गौतम ! भवनवामिदेवेभ्योपि उपपद्यन्ते, यावद् वैमानिकवेभ्योऽपि उपपयले यदा भवनवानिदेवेभ्य उपपधन्ते किम् अमुरकुमारदेवेभ्यो यावत् स्वनिनकुमारभ्य उपपद्यन्ते, गौतम ! अमुरकुमारदेवेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यावत् स्तनिाकुनारदेवेन्योऽपि उपपयन्ने, यदा वानव्यन्तरदेवेभ्य उपपद्यन्ते किं पिगाचेभ्यो याबद् गन्धर्वेश्यः उपपद्यन्ते ? ___ (जह देवहितो वि उववति ) यदि देवों से भी उत्पन्न होते हैं, (किं भवणवालि-वाणलंतर-जोइस-वेमाणिपतिनो उक्वजनि) क्या भवनवासी, बानव्यन्तर, ज्योतिप्क या दमानिको उत्पन्न होते हैं ? (गोथमा) हे गीतस ! भवणवालिदेदेशिनो वि इवनि ?) भवनवासीदेवो से भी उत्पन्न होते हैं । (जाव) यावत (माणिहितो वि उववज्जति) वैमानिकों से भी उत्पन्न होते हैं। (जह भवणवासि देवेहिंतो उववजनि) यदि भवनवासीदेवों से उत्पन्न होते हैं । (किं अमुरञ्जमारवेहिनो उववज्जति) क्या अग्मुरकुमार देवो से उत्पन्न होते हैं ? (जाव) यावत् (पणियकुमार देवेहितो वि उव. वज्जंति) स्तनितकुमार देवों से उत्पन्न होते है ? (गायमा !) हे गौतम ! (असुरकुमारदेवहिलो वि उववनंति) असुरजमारदेवो से भी उत्पन्न होते हैं ? (जाव थपियकुमार देवेंहितो वि उवधति) यावत् स्तनित कुमारदेवों से भी उत्पन्न होते हैं ? हिं तो वि उबवज्जति) २५५तिथी ५४ पन्न याय छे (जइ देवहिं तो वि ववजति) वोथी ५ ५- याय छ (1क मवण वासि-वाणमंतर-जोडस-वेमाणिएहि नो अवज्जति ?) भुलवनवासी, पानव्यतर, ज्योति मगर मानिया ५- थाय छ ? (गोयमा !) गौतम ! (भवणवासिदेवहितो वि उववजति) नवनवासी हेयोथी या ५- पाय छे (जाब) यावत् (वेमाणिएहिं तो वि उपवजनि) मानिटीथी पशु पन्त थाय छे (जह भवणवासिवेहि तो उवज ति) यहि मनवासी वाथी भन्न थाय छ, (किं असुरकुमारदेवेहि तो अवज्जति) शुभशुमार हैवोथी ५पन्न याय छ ? (जाव) यावत् (यणियफुमारेहि तो उबवज ति ?) सनिनमारोथी उत्पन्न थाय छ ? (गोयमा ।) 8 गौतम ! (असुरकुमारदेवेहि तो वि अवज्ञपि) ससुर सुमार वाथी ५४ पन्न याय छे (जाव थणियकुमारदेवहिं तो वि उजवज ति) થાવત્ સ્વનિતકુમાર દેથી પણ ઉત્પન્ન થાય છે
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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