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________________ प्रज्ञापन सूत्रे १०५८ मपि उपपद्यन्ते एवं यावद् वनस्पतिकायिकाश्चतुपयेण भेदेन उत्पादयितव्याः, यदा द्वीन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते किम् पर्याप्तक द्वीन्द्रियेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तक द्वीन्द्रियेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! द्वाभ्यामपि उपपद्यन्ते, एवं त्रीन्द्रिय चतुरिन्द्रियेभ्योऽपि उपपद्यन्ते, यदा पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, किंजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, एवं येभ्यो नैरयिकाणामुपपातो भणितस्तेभ्य वणस्सइकाइया चउक्झएणं भेदेण उववाएयदा) इसी प्रकार बनस्पति कायिकों तक चार भेद करके उपपात कह लेना चाहिए। ___ (जइ वेइंदितिरिक्खजोणिरहितो उचवज्जति) यदि नीन्द्रिय तिर्यचों से उत्पन्न होते हैं। (किं पज्जत्तयवेइंदिग्रहितो उवरजंति) क्या पर्याप्त दीन्द्रिय तिर्यचों से उत्पन्न होते हैं। (अपज्जत्तय बेईदिए हिंतो उववजति ?) या अपर्याप्तक हीन्द्रियो से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! दोहितो वि उववज्जंति) हे गौतम ! दोनों से उत्पन्न होते हैं, (एवं) इस प्रकार (तेइंदिय-चरिदिएहितो वि उववज्जति) वीन्द्रियों तथा चतुरिन्द्रियो से ली उत्पन्न होते हैं। (जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति) यदि पंचेन्द्रिय तियंचों से उत्पन्न होते हैं ? (किं जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति) क्या जलचर पंचेन्द्रिय निर्यचों से उत्पन्न होते हैं ? (एवं) इस प्रकार (जे हितो नेरइयाणं उरवाओ भणिओ) जिनसे नरकों का उपपात कहा है । (ते हितो) उनसे (एतेसिं वि भाणियचो) इनका भी काइया चउक्कएणं भेदेणं उबवाएयवा) से प्रारे वनपति यि सुधी यार ભેદ કરીને ઉપપાત કહેવો જોઈએ. (जइ वेदंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववजंति) मेन्द्रिय तिययाथी यन्न थाय छे (किं पज्जत्तय वेईदिएहितो उववज्जति) | पर्यादीन्द्रिय तिय याथी सत्पन्न थाय छे ? (अपजत्तय वेइंदिएहितो उपवजंति ?) मगर मपर्यास हिन्द्रियोथी 64न्न थाय छे (गोयम! ! दोहिंतो वि उववज्जति) 3 गौतम । मन्नथा उत्पन्न याय छ (एवं) से प्रारे (तेइंदिय-चरिदिएहि तो वि उववज्जति) वीन्द्रियोथा तथा यतुरिदियोथी पY ५न्न थाय छे (जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजंति) यह ययेन्द्रिय तिय याथा उत्पन्न थाय छ (किं जलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजंति) शुस२२ पयन्द्रिय तिय"याथी स्पन्न थाय छ ? (एवं) से प्रारे (जेहिंतो नेरयाणं उबवाओ भणिओ) रेमनाथी नाना पात ४ो छ (तहिंतो) तेमाथी
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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