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________________ प्रायशेधिनी टीज्ञा पद ६ सू.९ उरपरिसदीयामेकलमयेनोपपातनि० १०३३ उपपद्यन्ते ? गौतम ! एलञ्चैत्र, भवरम्-स्त्रीभ्यः प्रतिपेयः कर्तव्यः-असंज्ञिनः खलु प्रथमां द्वितीयामपि सरिस्पास्मीयां पक्षिगः। सिताः बांति चतुर्थीम् उरगा पुनः पञ्चमीं पृथिवीम् ॥१॥ पाठीश्च स्त्रियो मत्स्या मनुष्याश्च सप्तमीम् पृथिवीम् । एए परमोपपातो बोद्धव्यो लरकपृथिवीनाम् ॥२॥सू० ९।। ___टीका---गौतमः पृच्छति- 'जइ उरपरिसप्पथलयरपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति हे मदन्त नैरधिमाः यदा उरःपरिसपरथलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपचन्ते तदा "किं संच्छिमारिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो-उववज्जति' किं संच्छिमोर परिसीपलचरपञ्चेन्द्रिपतिर्यग्योनिकेभ्य अधःसप्तमी पृथिवी के नारक, हे भगवान् कहां से उत्पन्न होते हैं ? (गोयना ! एवं चेव) हे गौतम ! इसी प्रकार लम्बामा के समान (नवरं इत्थीहितो पडिलेहो कायको) विशेष-त्रियों ले उत्पन्न होने का निषेध करना चाहिए। गाथाओं का अर्थ-(जलनी) असंज्ञी (खल) निश्चय से (पढमं) पहली लरकभूमि में (दोच्चपि लरीलिया) सरीसृप दूसरी में (तक्ष्य पक्रसी) पक्षी तीसदी में (सीहा जति चउत्थि) सिंह चौथी भूमि में (उरगा) उरग (पुण) पुनः (पंचर्मि पुढपिं) पांचवीं पृथ्वी में (छट्टि च इत्थियाओ) स्त्रियां छठी में (लच्छा सणुया य सत्तमि पुढविं) मच्छ और मनुष्य सातवीं पृथ्वी में उत्पन्न हो सकते हैं । (एसो) यह (परमोबाओ) उत्कृष्ट उपपात (बोद्धव्वो) जानना चाहिए (नरगपुढवीणं) नरकसूमियों में ॥९॥ टीकार्थ-गौतम-प्रश्न करते हैं-हे भगवन ! यदि नारक जीव उरपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्थ चों से उत्पन्न होते हैं तो क्या संमूर्छिम पृथ्वीना ना२४, र भगवन् । ४याथी मापीन पन्न याय छ ? (गोयमा ! एवं चेव) गौत५ । मेकर प्रशारे तभ:प्रमाना समान (नवरं इत्थीहिंतो पडिसेहो कायव्यो) विशेष सीमाथी ५.न. पाने। निषेध ४२३। नये गाथामान 24 :-(असन्नी) असशी (खलु) निश्वयथी (पढम) ५९सी २४ भूमिमा (दो च्च पि सरीसिवा) सरीस५ मा (तइय पक्खी) पक्षी श्री (खीहा जति चउत्थिं) सिध्याथी मूभिभा (उरगा) ९२ (पुण) धुन (पंचमि पुढवि) पांयमी पृथ्वीमा (छट्रिंच इत्थियाओ) सीगाछीमा (मच्छो मणुयाय सत्तमि पुढविं) भ२७ भने मनुष्य सातभी पृथ्वीमा ५न्न श छे (एसो) २॥ (परमोवायो) eve ५पात (बोद्धयो) My (नरगपुढवीण) न२४ भूभियामां ॥१-२॥६॥ ટીકાઈ–શ્રી ગૌતમસ્વામી પ્રશ્ન કરે છે–હે ભગવન્ જે નારક જીવ ઉરઃ પરિસર્પ રઘલચર પંચેન્દ્રિય તિર્યચેથી ઉત્પન્ન થાય છે તે શું સંમૂર્ણિમ
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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