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________________ अंशापनास्त्र खलु भदन्त ! केभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! यथा धूमप्रभापृथिवीनैरयिकाः, नवरम् स्थलचरेभ्योपि प्रतिषेधः कर्तव्यः, अनेन अभिलापेन, यदि पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्यः उपपद्यन्ते किं जलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, स्थलचरपञ्चे न्द्रियेभ्यः उपपद्यन्ते, खेचरपञ्चेन्द्रियेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! जलचरपञ्चेन्द्रियेभ्य उपपद्यन्ते, नो स्थलचरेभ्यो नो खेचरेभ्य उपपद्यन्ते, यदि मनुष्येभ्य उपपद्यन्ते पृथिवी के नारकों के समान (नवरं) विशेष चउप्पणहितो वि पडिसे हो कायव्यो) चतुष्पदों से भी निषेध कर देना चाहिए (तमापुढवि नेरयाणं भंते ! कओहितो उववज्जति ?) हे भगवन् ! तमःप्रभा पृथ्वी के नारक कहां से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! जहा धूमप्पभा पुढवि नेरहया) हे गौतम ! धूमप्रभा के नारकों के समान (नवरं) विशेप (धलयरेहितो वि पडिसेहो काययो) स्थलचरों से भी निपेध करना चाहिए (इमेणं अभिलावेणं) इस अभिलाप-शब्दप्रयोग से (जइ पंचिंदियतिरिवखजोणिएहितो उपवनंति) यदि पंचेन्द्रिय तिर्यंचों से उत्पन्न होते हैं । (किं जलयरपंचिदिएहितो उववज्जति) क्यो जलचरपंचेन्द्रिय तिथंचों से उत्पन्न होते हैं ? (थलयर पंचिंदिएहिंतो उववज्जंति) स्थलचर पंचेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं ? (ग्वटर पंचिंदिएहितो उववज्जंति ?) खेचर पंचेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (जलयर पंचिदिएहिंतो उववज्जंति) जलचर पंचेन्द्रियों से उत्पन्न होते हैं, (नो थलयरेहितो) स्थलचरों से नहीं (नो खयरेहिंतो) खेचरों से नहीं उववज्जति) उत्पन्न होते हैं। समान (नवरं) विशेष (चउपएहितो वि पडिसेहो कायचो) यतु पहाथी पनिषध ४श हे लेणे (तमा पुढवि नेरईयाणं भंते : कओहिन्तो उववज्जंति) 3 भगवान् ? तम. पृथ्वीना ना२४ ४याथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा ! जहा धूमप्पभा पुढविनेरइया) 3 गोतम! धूमप्रसाना नानी समान (नवरं) विशेष (थलयरेहितो पडिसेहो कायव्वो) स्थक्षयरोथी पर निबंध ४२३ नये (इमेण भिलावण) मा मनिसा शण्ट प्रयागथी (जइ पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो खवज्जति) यहि पथेन्द्रिय तिर्थयाथी उत्पन्न थाय छे (किं जलयरपंचिदिएहिनो खवज्जति) शुस-य२ पश्यन्द्रियाथी उत्पन्न थाय छे (थलयरपंचिदिएहो उखवज्जति) स्थायर पथन्द्रियाथी पनि थाय छ (खहयरपंचिदिएहितो खवजति) न्य२ पथेन्द्रियाथी त्पन्न थाय छे (गोयमा! हे गौतम ! (जलयर. पंचिदिए हितो उववज्जति) सय ५येन्द्रियाथी स्पन्न थाय छे (नो खयरेहितो उवज्जति) मे यशथी पन्न, यता नथी.
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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