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________________ १०२८ सापना असंख्येयवर्पायुष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते । यदि संख्येयवर्षायुष्ककर्मभूमिगगर्भव्युत्क्रान्तिकमनुष्येभ्य उपपद्यन्ते, किं पर्याप्तकस्य उपपधन्ते, अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते । एवं यथा औधिका उपपादितास्तथा रग्नप्रभापृथिवीनैरयिका अपि उत्पादयितव्याः, शर्कराप्रभापृथिवीनैरयिकाणां पृच्छा, गौतम ! एतेऽपि यथा हैं। (नो असंखिजवासाउयकम्मभूमिगगरवातियमणुस्सेहितो उबवज्जंति)असंख्यातवर्ष की आयु वाले गर्भज मनुप्यों से उत्पन्न नहीं होते (जई संखेज्जवासाउयसम्मभूमिगगम्भवतियखणुस्लेहितो उववज्जंति ?) यदि संख्यातवर्ष की आयु वाले कर्म भूमि में उत्पन्न मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं (किं पजत्तरोहितो उचवज्जंति, अपज्जत. हिंतो उववज्जति ? ) क्या पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उवरज्जंति नो अपज्जत्तएहितो उववज्जंति) हे गौतम ! पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्तकों से नहीं उत्पन्न होते। (एवं) इस प्रकार (जहा) जैसे (ओहिया उवाइया) सामान्य नारकों की उत्पत्ति कही (तहा) उसी प्रकार ( रयणप्पभापुढवि नेरइया वि उववाएयव्या) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारकों का उत्पाद समझना चाहिए। (सकरप्पभापुढवि नेरड्या णं पुच्छा !) शर्कराप्रभा :पृथ्वी के नारकों के विषय में पृच्छा ? (गोयमा ! एते वि जहा ओहिया तहे त्पन्न थाय छे (नो असंखज्जवासाउयकम्मभूमिगगम्भवतियमणुस्सेहितो उबवजंति) असभ्यात पनी मायुवा गम मनुष्यथा त्पन्न नथी यता (जइ संखेज्जवासाउयकम्मभूमिगगम्भवतियमणुस्से हिंतो उववज्जति) यहि સંખ્યાત વર્ષની આયુષ્યવાળા કર્મભૂમિમાં ઉત્પન્ન થયેલ ગર્ભવ્યુત્કાનિક भनुध्याथी उत्पन्न थाय छे (किं पज्जताहिंतो उववजंति ? अपज्जत्तरोहितो उबवजति ?) शु पर्यायी उत्पन्न बाय छे, मगर अपर्यायी उत्पन्न थाय छ १ (गोयमा ! पन्जत्तएहिता उववज्जति) 3 गौतम | पतिथी अपन्न याय છે, અપર્યાપકેથી ઉત્પન્ન નથી થતા (एवं) शत (जहा) हेम (ओहिया उदवाइया) सामान्य नानी पतिडी (तहा) र २ (रयणप्पभा पुढवि नेरच्या वि उववाएयव्वा) રત્નપ્રભા પૃથ્વીના નારકેને ઉત્પાદ સમજવું જોઈએ (सफरप्पमा पढवि नरद्वराणं पुछा 1) श४२१३ मा पृथ्वीना नाना विषयमा छ। ? (गोगमा । एते वि जहा ओहिया तहेवोववाएयवा) 3
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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