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________________ प्रमेयबोधिनी टीका पद ६ सू.९ उरपरिसादीनामेकसमयेनोपपातनि० १०२३ मपि उपपद्यन्ते, यदि संमूच्छिमभुजपरिसर्पस्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपधन्ते ? किं पर्याप्तकसंमूच्छिमभुजपरिसर्पस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकसमूच्छिमभुजपरिसर्पस्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकेभ्य उपपधन्ते ? यदि गर्भव्युत्क्रान्तिकभुजपरिसर्पस्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, किं पर्याप्तकेभ्य उपपद्यजोणिएहितो उववज्जंति ?) गर्भज भुजपरिस स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों से उत्पन्न होते हैं ? ((गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति) हे गौतम ! दोनों से ही उत्पन्न होते हैं । (जई संमुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति) यदि संमूछिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिथंचों से उत्पन्न होते हैं, (किं पज्जन्तगसमुच्छिमभुयपरिसप्पजलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति) क्या पर्याप्तक संमूर्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्य चों से उत्पन्न होते हैं । (अपज्जत्तगसंमुच्छिमभुयरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उधवज्जंति ?) अपर्यातक संमूर्छिम भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (पज्जत्तेहितो उवधज्जति) पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं (नो अपबत्तएहिंतो उववज्जति) अपर्याप्तकों से नहीं उत्पन्न होते। (जइ) गम्भवक्कंतियभुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जति) यदि गर्भज भुजपरिसर्प स्थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यचों पयन्द्रिय तिय याथी उत्पन्न थाय छ १ (गोयमा ! दोहितो वि उववज्जति) ગૌતમ ! બનેથી ઉત્પન્ન થાય છે (जइ संमुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिदिक्खजोणिएहि तो उववज्जति) યદિ સંમૂછિમ ભુજપરિસર્ષ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિયાથી ઉત્પન્ન થાય છે (किं पज्जत्ततगसंमुच्छिममुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जति) શું પર્યાપ્ત સંમૂર્ણિમ ભુજ પરિસર્પ સ્થલચર પંચેન્દ્રિય તિયાથી ઉત્પન્ન थाय छ (अपज्जत्तगसमुच्छिमभुयपरिसप्पथलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्जंति ?) अपर्यास स भूमि सुपरिस५ २५सयर पन्द्रिय तिय साथी G4-1 थाय छ १ (गोयमा !) 3 गीतम! (पज्जत्तएहिं तो उववज्जति) पोथी उत्पन्न थाय छे (नो अपज्जत्तएहि तो उववज्जति) मपर्यास नथी उत्पन्न यता (जइ गम्भवतियभुयपरिसप्पथलयरपंचिं दियतिरिक्खजोणिएहितो उववज्जति) ने सुर परिस स्थलय२ ५'येन्द्रिय तिय याची पन्न याय
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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