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________________ १००६ प्रज्ञापनासूत्रे पञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, कि पर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कगर्भव्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्थलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकसंख्येयवर्षायुष्कग मैथ्युत्क्रान्तिकचतुष्पदस्थलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकसंख्येयवपौयुष्केभ्य उपपद्यन्ते, यदि - उत्पन्न होते हैं (नो असंखेजबासाउ एहितो उज्जेति ) असंख्यात वर्ष की आयु वालो से नहीं उत्पन्न होते (जः संखज्जवासाज्यगन्भवक्कतिय चडप्पयथलयरपंचिदियतिरिक्जोरिहंतो वज्जति) यदि संख्यातवर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पदस्थलचर पंचेन्द्रियतियचों से उत्पन्न होते हैं । 'किं पज्जत्तगसंखेजवा साउयगग्भवतिय चडप्पयथलयर पंचिदियतिरिक्खजोणिहितो उबवज्र्ज्जति) क्या पर्याप्त संख्यातवर्ष की आयुवाले गर्भजचतुष्पदस्थलचरपंचेन्द्रियतिश्चों से उत्पन्न होते हैं ? (अपजत्तगसंखेज्जवासाज्यगन्भवक्कंतियच उपयथलचरपंचिदिद्यतिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जेति ?) अपर्याप्त संख्यातवर्ष की आयु वाले गर्भज चतुष्पद स्थलचर पचेन्द्रिय निर्यचों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा 1) हे गौतम! (पज्जत्तेहिंतो उचबज्र्ज्जति, नो अपज्जत्तय संखेज्जवासाउएहिंतो उववज्र्जति ) पर्यातकों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्त संख्यातवर्ष की आयु वालों से नहीं उत्पन्न होते हैं । ब्जवासा उएहि तो उववर्द्धति) सभ्यात वर्षांनी मायुवाणाथी उत्यन्न थाय छे (नो असंखेज्जवासा उरहितो ववनंति) असं ज्यात वर्षांनी आयुवाजागोथी નથી ઉત્પન્ન થતાં ( जइ संखेज्जवासाज्यगन्भवक्कंतिय चउपचथलयरपंचि दियतिरिक्खजोणिएहिंतो वज्र्ज्जति) यहि संध्यात वर्षानी माधुवाणा जर्मन तुष्य स्थसयर यथेन्द्रिय तिर्ययाधी उत्पन्न थाय छे ? ( कि पज्जत्तगसंखज्जवासाज्यगव्भवक्कंतिचचउपचथलवरपंचिंढियतिरिक्खजोणिएहि तो उववर्द्धति) शु पर्याप्त संख्यात વની આયુવાળા ગજ ચતુષ્પદ્મ સ્થલચર પચેન્દ્રિય તિય ચેાથી ઉત્પન્ન થાય छे ? (अपज्जत्तग संखेञ्जवासाउयगन्भवक्कतियचउ पययलय र पंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिं तो उववज्र्ज्जति) अपर्याप्त सध्यात वर्षानी आयुवामा गर्भ तुष्यह स्थावर पचेन्द्रिय तिर्य थोथी उत्पन्न थाय छे ? (गोयमा । हे गौतम !) (पत्ते हि तो उति नो अज्जत्तय संखेज्जवासा उएहि तोड ववज्र्ज्जति) पर्या साथी ઉત્પન્ન થાય છે, અપર્યાપ્ત સખ્યાત વની આયુવાળાથી ઉત્પન્ન નથી થતા
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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