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________________ २००२ प्रज्ञापनासूत्रे किम् अपर्याप्तकसंमूच्छिमजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकसंमृच्छिमजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेश्य उपपद्यन्ते, नो अपर्याप्तकसंमृच्छिमजलचरपञ्चन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते यदि गर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरपञ्चेन्द्रियतियग्योनिकेश्यउपपद्यन्ते कि पर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकेभ्य उपपद्यन्ते, अपर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकैभ्य उपपद्यन्ते ? गौतम ! पर्याप्तकगर्भव्युत्क्रान्तिकजलचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योसे उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! पजत्तयसमुच्छिमजलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहितो उबवजंति, नो अपज्जत्तयसंमुच्छिमजलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणिपहितो उचबज्जति) हे गौतम ! पर्याप्तक संमूछिम जलयर पंचेन्द्रिय तियचों से उत्पन्न होते हैं, अपर्याप्त संमृछिम जलचर पंचेन्द्रियनियंचों से नहीं उत्पन्न होते हैं (जइ गम्भवक्कंतिय जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिहितो उववज्जति) यदि गर्भजजलचर पंचेन्द्रियतिथंचों से उत्पन्न होते हैं (किं पजत्तयगन्भवतिय जलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणिहितो उववति, अपज्जत्तयगम्भवक्कंतिय जलयरपंचिंदियतिरिकग्वजोणिएहितो उववज्जंति ?) तो क्या पर्याप्त गर्भज जलचर पंचेन्द्रियनिर्यचों ले उत्पन्न होते हैं या अपर्याप्त गर्भज जलचर पंचेन्द्रिय तिर्थचों से उत्पन्न होते हैं ? (गोयमा ! पज्जत्तयगम्भवक्कंतियजलयर पंचिंदियतिरिकग्नजोणिएहिंतो उववज्जंति, पर्याप्त स भूभिनय२ ५थेन्द्रिय तिय याथी हत्पन्न थाय छे ? (किं अपज्जत्तय मंमुन्छिमजलयरपंचिंटियतिरिक्ख जोणिहितो उचवज्जति) शु अपर्याप्त भूमि सय२ पयन्द्रिय तिय याची उत्पन्न याय छे ? (गोयमा । पज्जत्तय. मंमुन्छिम जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उअवज्जति नो अपज्जत्तय संमुच्छिम जलयरपचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजनि) र गौतम | पर्यास सभूछिम જળચર પંચેન્દ્રિય તિર્યથી ઉત્પન્ન થાય છે. અપર્યાપ્ત સ મૂર્ણિમ જલચર ५थेन्दिय तिय याथी नही (नधी) ५न्न यतi (जड गम्भवक्कंतिय जलयर पंचिंदियतिरिक्खजोणिहितो उपवजनि) ने गर्म सय२ ५३न्द्रिय तिय याथी ५- याय छे (किं पन्जत्तय गम्भवतिय जलयरपंचिंदियतिरिवखजोणिएहितो उबवजंति, अपज्जनय गभवतिय जलयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उबवजति ?) तो शु पर्यात गर्म सय२ ५.येन्द्रिय तिय याथी पन थाय छे मा२ अपर्यात ग सय ५३न्द्रिय तिय याची सत्पन्न याय छे ? (गोयमा ! पज्जत्तयगम्भवक्कंनिय जलयर पंचिंदियनिरिक्खजोणिहितो उववजनि, नो अपन्जतय गमवनिय जलयर पंचिदियतिरिक्यजोणिएहितो उबवजंति) 3 गीतम!
SR No.009339
Book TitlePragnapanasutram Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1975
Total Pages1196
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size80 MB
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