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________________ प्रमेयबोधिनी टीका दि. पद २ सू.२९ सिद्धानां स्थानादिकम् योजनकोटिम् द्वाचत्वारिंशच शतसहस्राणिं त्रिंशच्च सहस्राणि द्वे च एकोनपञ्चाशत् योजनशते किश्चित् विशेषाधिकम् परिक्षेपेण प्रज्ञप्ता, ईपत्प्राग्भारायाः खलु पृथिव्याः वहुमध्यदेशभागे अष्ट योजनकं क्षेत्रम् अष्ट योजनानि वाहल्येन प्रज्ञप्ता, ततोऽनन्तरञ्च मात्रया मात्रया प्रदेशपरिहान्या परिहीयमाना परिहीयमाना सर्वेषु चरमान्तेषु मक्षिकापत्रतोऽपि तनुकतरी अङ्गुलस्यासंख्येयभागं बाहल्येन प्रज्ञप्ता, ईपत्यग्रभारायाः खलु पृथिव्याः द्वादश नामधेयानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथा(पणयालीसं जोयणसयसहस्साई) पैंतालीस लाख योजन (आयामविक्खंभेणं) लम्बाई-चौडाई वाली (एगा जोयणकोडी बायालीसं च सयसहस्साई तीसं च सहस्साईदोन्नि य अउणापन्ने जोयणसए किचिविसेसाहिए) एक करोड बयालीस लाख तीस हजार दो सौ उनपचास योजन से कुछ अधिक (परिक्खेवेणं) परिधि वाली (पण्णत्ता) कही है (ईसिपम्भाराए णं पुढवीए) ईषत् प्रारभार पृथिवी के (बहुमज्झदेसभाए) बिलकुल मध्य भाग में (अट्ठजोयणिए खेत्ते) आठ योजन का क्षेत्र (अट्टजोयणाई) आठ योजन (बाहल्लेणं) मोटा (पण्णत्ते) कहा है (तओ अणंतरं च णं) उसके अनन्तर (मायाए मायाए पएसपरिहाणीए) मात्रा-मात्रा से अर्थात् अनुक्रम से प्रदेशों की कमी होतेजाने से (परिहायमाणी परिहायमाणी) हीन होती-होती (सव्वेसु चरमतेसु) सब के अन्त में (मच्छियापत्ताओ) मक्खी के पंख से (तणुययरी) अधिक पतली (अंगुलस्स असंखेज्जइमागं बाहल्लेणं) अंगुल के असंख्यातवें भाग मोटाई वाली (पण्णत्ता) कही है। ४ो छ (पणयालीसं जोयणसयसहस्साई) पास्तासीस साल यान (आयामविक्खंभेण) सम्मा पहावाणी (एगा जोयण कोडीबायालीसं च सय सहस्साई तीसं च सहस्साई दोन्निय अउणापन्ने जोयणसए किंचि विसेसाहिए) એક કરોડ બેંતાલીસ લાખ ત્રીસ હજાર બસો ઓગણ પચાસ યોજનથી કાંઈક माध४ (परिक्खेवेणं) पविवाणी (पण्णत्ता) ४ (ईसि पन्भाराए णं पुढवीए) प्रयत्प्रासार पृथ्वीना (वहमज्झ देसभाए) मिसस मध्य भागमा (अट्ठजोयणिए खेते) माठ यानन क्षेत्र (अष्ट्र जोयणाई) 218 योगन (वाहल्लेणं) भाट (पण्णत्ते) यु छ (तेओ अणंतरं च णं) तना पछी (मायाए मायाए परसपरिहाणीए) भात्रा -भात्राथी अर्थात् मनुभथी प्रशानी भी थती पाथी (परिहायमाणीपारहायमाणी) डीन थती थती (सव्वेसु चरमंतरेसु) मधानी छवट (मच्छियापत्ताओ) भगीनी पांथी (तणुययरी) माघ १ भोगं वाइल्लेणं) म साना मसभ्यातमा मानी मोटापाजी (पण्णत्ता) ४ी छ। संखेज्जइ. COIL :
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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