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________________ ९६६ प्रेमापनासूर्य णाम् उपरि यावत् उत्पत्य अत्र खलु उपरिमौवेयकाणाम् त्रयो ग्रैवेयकविमानप्रस्तटाः प्रज्ञप्ताः, प्राचीनप्रतीचीनायताः, शेषं यथा अधस्तन ग्रेवेयकाणाम् नवरम् एकं विमानावासशतं भवति इत्याख्यातं, शेपं तथैव भणितव्यम् यावत् अहमिन्द्राः नाम ते देवगणाः प्रज्ञप्ताः श्रमणायुष्मन् ! एकादशोत्तरम् अधस्तनेषु सप्तोत्तरश्च मध्यमके, शतमेकम् उपरिमके पश्चैव अनुत्तरविमानानि ॥१४९॥ कुत्र खलु भदन्त ! अनुत्तरौपपातिकानाम् देवानाम् पर्याप्तापर्याप्तानाम् स्थानानि परिवसति ?) हे भगवन् ! ऊपरी वेथक देव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (मज्झिमगेचिज्जगाणं उप्पिं) मध्यम ग्रैवेयकों के ऊपर (जाव उप्पइत्ता) यावत् ऊंचे जाकर (एत्थ णं) यहां (उपरिमगेविज्जगाणं) ऊपरी त्रैवेयकों के (तओ) तीन (गेविज्जग विमाणपत्थडा) अवेयक विमानों के पाथडे (पण्णत्ता) कहे हैं (पाईणपडीणायया) पूर्व --पश्चिम में लम्बे (सेसं जहा हेहिमगेविज्जगाणं) शेष वर्णन अधस्तन त्रैवेयकों के समान (नवरं) विशेष (एगे विमाणावाससए भवंतीति भक्खायं) एक सौ विमान हैं, ऐसा कहा है (सेसं तहेव भाणियव्वं) शेष उसी प्रकार कहना चाहिए (जाव अहमिदा नासं ते देवगणा पण्णता) थावत् वे देवाण अहमिन्द्र कहे गए हैं (सभणाउसो) हे आयुष्मान् श्रमणो ! (एकारसुत्तरं) एक सो ग्यारह (हेडिमेसु) नीचे के अवेयकों में (सत्तुत्तरं च मज्झिमए) एक सौ सात मध्यम अवेघकों में (सयमेगं उचरिमए) ऊपर में एक सौ (पंचेच अणुत्तर विमाणा) अनुत्तर विमान पांच ही हैं। या निवास ४२ छ ? (गोयमा !) गौतम ! (मज्झिमगेविज्जगाणं उप्पि) मध्यना अवेय: हेवाना ५२ (जाव उप्पइत्ता) यावत् १५४ने (एत्थ णं) मडीया (उपरीमगेवेज्जगाणं) ६५२ना मवेय हेवाना (तओ) ३ (गेविजगविमाणपत्थडा) अवेय विभानाना पाथ।मे। (पण्णत्ता) ४ा छे. (पाईणपडिणायया) पूर्व पश्चिम त२६ सin (सेसं जहा इद्विमगेविज्जगाणं) मीनु वन नीयन अवेयछीना वर्णन प्रभार सभ७ , (नवर) विशेष (एरो विमाणावाससए हवंतीति मक्खाय) मे से। विभान छ, म ४युं छे (सेसं तहेव भाणियव्वं) शेष थे शतहे ध्ये (जाव अहमिदा नाम देवगणा पण्णत्ता) ते गए। मभिन्द्र सा छे (समाणाउसा) हुमायुष्यभन् श्रम । (एक्कारसुत्तरं) मे से जीयार (हे द्विमेसु) नायना अवयीन (सत्तुत्तरं च मझिमए) मे से सात मध्यम अवेयरमा (सयमेग उवरिमए) १५२ मे से(पंचेव अणुत्तरविमाणा) मनुत्तर विभान पाय छ ।
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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