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प्रज्ञापनासूत्रे स्त्रीणि । सप्तविमानशतानि, चतुर्पु अपि एतेषु ॥१४७॥ सामानिकसंग्रहणीगाथा चतुरशीतिः अशीतिः द्वासप्ततिः, सप्ततिश्च पप्टिश्च । पञ्चाशत् चत्वारिंशत् त्रिंशत् विंशतिः दशसहस्राणि ॥१४९॥ एते चैव आत्मरक्षाश्चतुर्गुणाः ॥सू० २७॥ . टीका- अथ पर्याप्तापर्याप्तकब्रह्म लोकदेवानां स्थानादिकं प्रस्पयितुमाह -'कहिणं भंते ! वंभलोगदेवाणं' गौतमः पृच्छति-हे भदन्त ! कुत्र खलुकस्मिन् स्थले, ब्रह्मलोकदेवानाम् ‘पज्जत्तापजत्ताणं' पर्याप्तापर्याप्तानाम् 'ठाणा पण्णत्ता' स्थानानि-स्थित्यपेक्षया स्वस्थानानि, प्रज्ञप्तानि-प्ररूपितानि सन्ति ?
गाथार्थ-(बत्तीस अट्ठवीसा वारस अट्ठ चउरो सयसहस्सा) यत्तीस लाख, अट्ठाईस लाख, बारह लाख, आठ लाख, चार लाख (पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा) पचास हजार, चालीस हजार, छह हजार, (सहस्रारे) सरनार में ॥१४॥
(आणयपाणयकप्पे) आनत-प्राणत कल्प में (चत्तारि सया) चार सौ (आरणच्चुए तिन्नि) आरण-अच्युत में तीन मौ (सत्तविमाणसयाई) सात सौ विमान (चउनु वि एएसु कप्पे) इन चारों कल्पों में ॥१४॥
___ सामालिक संग्रहणी गाथा का अर्थ-(चउरासीई) चौरासी (असीई) अस्सी (बावत्तरी) बहत्तर (सत्तरी य) सत्तर (सट्ठी य) साठ (पन्ना) पचास (चत्तालीसा) चालीस (तीसा) तीस (बीसा) बीस (दस) दस (सहस्सा ) हजार ॥१४८॥
(एए चेव आयरक्खा चउग्गुणा) आत्मरक्षक इनसे चौगुने हैं ॥२७॥
टीकार्थ-अब ब्रह्मलोक आदि कल्पों के देवों के स्थान की प्ररूपणा की जाती है--
या-(बत्तीस अंटवीसा वारस अट्टचउरो सयसहस्सो) त्रास दास, २५४यावीस पा२ ८५, साई साम, या२ साम (पण्णा चत्तालीसा छच्च सहस्सा) पयास ७००२, यासीस ॥२, ७ २ (सहस्सारे) संसारमा १४६ ॥
(आणयपाणयकापे) मानत प्राप्त नामना ४६५i (चत्तारि सया) यारसा (आरणच्चुए तिन्नि) मा२९-अच्युतभा से (सत्त विमाणसयाई) सातसे। विमान (चउसु वि एण्सु कप्पेसु) २मा यारे ४६षाभ! ॥ १४७ ॥
__सामानि स अशी याना मथ (चउरासीई) योरासी (असीई) मे भी (बाबत्तरी) माते२ (सत्तरीय) सीते२ (सदीय) साह (पन्ना) ५यास (चत्तालीसा) यालीस (तीसा) त्रीस (बीसा) पीस (दस) ४१ (सहरसा) २ ॥ १४८ ॥
(एए चेव आयरक्खा चउग्गुणा) मा भ२१४ तेमनाथी या२ छ॥ २७ ॥ ટીકાર્થ-હવે બ્રહ્મલેક આદિ કલપના સ્થાનની પ્રરૂપણ કરાય છે