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________________ प्रज्ञापनासो काणाम् देवानाञ्च देवीनाञ्च आधिपत्यम् यावद् विहरन्ति, चन्द्रसूयौँ अत्र दौ ज्योतिकेन्द्रौ ज्योतिष्कराजानौ परिवसतः, महद्धिको यावत् प्रभासयन्ती, तोच तत्र स्वेषां स्वेषां ज्योतिष्कविमानावासशतसहस्राणाम् चतसृणां सामानिक साहस्त्रीणाम् चतसृणाम् अग्रमहिपीणाम् सपरिवाराणाम्, तिहणां पर्षदाम् सप्तानाम् अनीकानाम्, सप्तानाम् अनीकाधिपतीनाम् पोडशानाम् आत्मरक्षक देव साहस्री(साणं साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) अपने-अपने सहस्रों आत्मरक्षक देवों का (अन्नेसि च बहणं) और वहुत-से अन्य (जोइसियाण) ज्योतिष्क (देवाण देवीण य) देवों और देवियों का (आहेवच्च) अधिपतित्व (जाव) यावत् (विहरंति) विचरते हैं। ___(चंदिमसूरिया) चन्द्रमा और सूर्य (इत्थ) इनमें (दुवे) दो (जोहसिंदा) ज्योतिष्कों के इन्द्र (जोइसियरायाणो) ज्योतिष्कों का राजा (परिवसंति) निवास करते हैं (महिडिया जाव पभासेमाणा) महर्द्धिक यावत् प्रकाशित होते हुए (ते णं) वे (तत्थ) वहां (साणं साणं) अपने, -अपने (जोइसियविमाणावाससयसहस्साणं) लाखों ज्योतिष्क विमानों का (चउण्हं सामाणियसाहस्लीणं) चार हजार सामानिकों का (चउण्हं अग्गमहिसीणं) चार अग्रमहिषियों का (सपरिवाराणं) परिवार सहित (तिण्हं परिसाणं) तीन परिषदों का (सत्तण्हं अणियाण) सात अनीकों का (सत्तहं अणियाहिबईणं) सात अनीकाधिपतियों का (सोललण्हं आयरक्खदेवसाहसलीणं) सोलह हजार आत्मरक्षक पतियाना (साणं साणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं) पातपाताना स माम २२४ हेवाना (अन्नेसि च बहूण) मने धा धा मीn (जोइसियाणं) न्याति०४ (देवाणं देवीणय) हे मने वियोन। (आहेबच्च) मधिपतित्व (जाव) यावत (विहरंति) वियरे छ (चंदिम सूरिया) यन्द्रमा भने सूर्य (इत्थ) मेगामा (दुवे) मे. (जोइसिंदा) ज्योतिन धन्द्र (जोइसियरायाणो) ज्योतिष्ठान। २am (परिवसंति) निवास ४२ छ (महिड्ढिया जाव पभासेमाणा) मदिर यावत् प्राशित यता छतi (ते ण) तशा (तत्थ) त्यां (साणं साणं) पातपाताना (जोइसियविमाणावाससयसहस्साण) सामे योनि विमानाना (चउण्ह. सामाणियसाहस्सीणं). यार ९०१२ साभानिछीना (चउण्डं अग्गमहिसीण) या२ २महिलियाना (सपरिवाराणं) परिवार सहित (तिण्हं परिमाण) a परिषदाना- (सत्तण्हं अणियाणं) सात मनाना (सत्तण्हं अणियाहिबईणं) सात मनीधिपतियाना (सोलसण्ह आयरक्खदेवसाहस्सीणं) सेस २ माम२३४ हेवाना (अन्नेसि च बहूण
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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