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________________ ८१७ प्रमेययोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२२ पिशाचदेवानां स्थानानि कायो महाकायो गीतरतिश्चैव, गीतयशाः ॥१४२॥ कुत्र खलु भदन्त ! अणपणिकानां देवानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? कुत्र खलु भदन्त ! अणपर्णिका देवाः परिवसन्ति ? गौतम ! अस्याः रत्नप्रभायाः पृथिव्याः रत्नमयस्य काण्डस्य योजन सहस्रवाहल्यस्य उपरि यावद् योजनशतेषु, अत्र खलु अणपर्णिकानां देवानां तिर्यग्र असंख्येयानि नगरावाससहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातं, तानि खलु यावत् प्रतिरूपाणि अत्र खलु अणपर्णिकानां देवानाम् स्थानानि, उपपातेन लोकस्य रिसे) सत्पुरुष (खलु) निश्चय (तहा महापुरिसे) तथा महापुरुष (अइकायमहाकाए) अतिकाय और महाकाय (गीयरई चेव गीयजसे) गीतरति और गीतयश ॥१४२॥ (कहि णं भंते ! अणवन्नियाण देवाण ठाणा पण्णत्ता ?) हे भगवन् ! अणपर्णिक देवों के स्थान कहां कहे हैं ? (कहि ण भंते ! अणवन्निया देवा परिवसंति) हे अगवन् अणपर्णिक देव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा) हे गौतम ! (इनीसे रयणप्पभाए पुढवीए) इस रत्नप्रभा पृथ्वी के (रयणामयस्स कंडस्स) रत्नमय कांड के (जोयणसहस्सबाहल्लस्स) हजार योजन मोटे (उवरिं जाव जोयणसएसु) ऊपर-नीचे के सौ-सौ योजन छोड कर बीच के आठ सौ योजन में (एत्थ ण) यहां (अणवन्नियाण) अणपर्णिक (देवाण) देवों के (तिरियमसंखेज्जा) तिर्छ असंख्यात (णगरावाससयसहस्सा)) लाख नगरावास (भवंतीति मक्खायं) हैं, ऐसा कहा है (ते ण जाव पडिरूवा) वे यावत् प्रतिरूप हैं (एत्थ ण) यहां (अगवणियाण) अण (किन्नरकिंपुरिसे) नि२ मन ५३५ (खलु) निश्चय (सम्पुरिसे) सत्५३५ (खलु) निश्चय (तहा महापुरिसे) तथा महा५३५ (अइकायमहाकाए) मतिय भ य (गियरई चेव गीयजसे) गीत२ति मने जीतयः ॥ १४२ ।। (कहि णं भंते | अणवन्निकयाणं देवाणं ठाणा पण्णत्ता) सावन मान ५४ हेवाना स्थान ४या ४i छ ? (कहि णं भंते | अणवन्निया देवा परिवसंति) सावन् । भएपणुि हे। ४५i निवास ४२ छ ? (गोयमा) गौतम । 'इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए) मा २नमा पृथ्वीना (रयणामयस्सकंडस्स) २त्नमय उना (जोयणसहस्सवाहल्लस्स) M२ थान मोटाना (उपरि जाव जोयणसएसु) ५२ नायना से से योन छोडी क्या मासे योनमा (एत्थ णं) मही (अणवन्नियाण) माशुप४ि (देवाणं) हेवाना (तिरियमसंखेज्जा) ति मस ज्यात (णगरावाससयसहस्सा) दाम नारावास (भवंतीति मक्खाय) छे, सेभ यु छ (तणं जाव पडिरूवा) तया यावत् प्रति३५ छ (एत्थ णं) मही (अणवण्णियाणं) प्र० १०३
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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