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________________ 2 प्रमेयवोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२० सुनकुमारदेवानां स्थानानि ७७३ चन्दन दर्दरदत्तपञ्चालितलानि उपचितचन्दनकलगानि चन्दनकृततोरण प्रतिद्वारदेगभागानि आसकोत्सिक्तविपुलवृत्तव्याधारितमाल्यदायकलापानि पञ्चवर्णसरमछुरभिमुक्तपुष्पपुञ्चोपचारकलितानि काला गुरुप्रवरकुन्दुरुष्कतुरुष्क धूपमघमधायमानगन्धोद्धृताभिरामाणि, अतएव सुन्दराणि सुगन्धवरगन्धिकनि गन्धवर्तिभूतानि अप्सरोगणसंघ संविकीर्णानि दिव्यत्रुटितशब्दसंप्रणादितानि सर्वरत्नमयानि अच्छानि श्लक्ष्णानि मतृणानि घृष्टानि सृष्टानि नीरजांसि निर्मलानि निष्पङ्कानि निष्कङ्कटच्छायानि सप्रमाणि सश्रीकाणि समरीचिकानि सोद्योतानि प्रासादिकानि दर्शनीयानि अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि सन्ति, 'तत्थ णं सुवण्णकुमाराणं हैं । गोशीर्ष एवं सरस रक्त चन्दन के हाथे उनमें लगे है जिनमें पांचों उंगलियाँ उछरी हुई हैं । चन्दन चर्चित कलशों से सुशोभित हैं । उनके प्रतिद्वार देशभाग में मांगलिक घटों के सुन्दर तोरण बने हुए हैं। वहां ठेठ ऊपर से ठेठ नीचे तक विशाल और वृत्ताकार माल्यदामों के समूह लटकते हैं । बिखरे हुए पांच वर्गों के सरस और सुगंधित पुष्पों के उपचार से युक्त हैं । काले अगर, चोडा और लोबान को धूप की महकती हुई गंध के समूह से अत्यन्त रमणीय लगते हैं । उत्तम सुगंध से सुगंधित हैं । सुगंध की वत्ती के समान प्रतीत होते हैं । अनेक अप्सराओं के समूहों से व्याप्त हैं । दिव्य वाद्यों की ध्वनि से गूंजते रहते हैं । सर्वरत्नमय हैं, स्वच्छ हैं, चिकने हैं, मृदु हैं, घटारे महारे हैं, नीरज हैं, निर्मल और निष्क हैं । निरावरण छाया वाले प्रभामय, श्रीसम्पन्न, किरणों से युक्त, प्रकाशमय, प्रसन्नता जनक, दर्शनीय तथा अभिरूप और प्रतिरूप हैं । वहां पर्याप्त तथा રહે છે. તેઓ લિખ્યા ઘુખ્યા રહેવાથી પ્રશસ્ત પ્રતીત થાય છે. ગોરોચન તથા લાલ ચન્દનના હાથના તેમા થાપા લાગેલા હાય છે જેમાં પાંચે આંગળીચે પડેલી હાય છે ચન્દ્રન ચાĆત કલશેાથી સુÀાભિત છે. તેમના પ્રતિદ્વાર દેશભાગમા માગલિક ઘડાઓના સુન્દર તારણુ મનેલાં હેાય છે. ત્યા ઠેઠ ઉપરથી ઠેઠ નીચે સુધી વિશાલ અને વૃત્તાકાર પુષ્પહારાના સમૂહ લટકે છે. વેરાએલા પાચ રગના સરસ અને સુગ બિહાર પુષ્પાની શેાભાથી યુક્ત છે. કાળું અગર ચન્દન ચીડા અને લેાખાનના ધૂપની મઘમઘથી સુગન્ધિત છે સુગન્ધની ગેાટીના સમાન જણાય છે. અપ્સરાએનો સમૂહથી વ્યાપ્ત છે દ્વિવ્ય વાદ્યોનાં ध्वनिथी गून्र्ता रहे छे. सर्व रत्नभय, २१२० हे. विषा है, अभण छे. નિર્મળ છે અને નિષ્પક છે. નિરાવરણ છાયાવાળા પ્રણામય, શ્રી સપન્ન, કિરણાથી યુક્ત પ્રકાશમય, પ્રસન્નતા જનક, દર્શનીય તથા અભિરૂપ અને
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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