________________
प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२० सुवर्णकुमारदेवानां स्थानानि ७६९ अष्टत्रिंशश्च शतसहस्राणि । पञ्चाशत् चत्वारिंशत् दक्षिणतो भवन्ति भवनानि ॥१३२॥ त्रिंशत् चत्वारिंशत्, चतुस्त्रिंशत् चैव शतसहस्राणि पट् चत्वारिंशत् पट्टत्रिंशत् उत्तरत्तो भवन्ति भवनानि ॥१३३॥ चतुप्पष्टिः षष्टिः खलु पट् च सहस्राणि असुर वर्जानाम् । सामानिकास्तु एते चतुर्गुणा आत्मरक्षास्तु ॥१३४॥ चमरो घरणस्तथा वेणुदेवो हरिकान्तः अग्निसिंह, पूर्ण जलकान्तथामितो विलम्बच घोपश्च ॥ १३५ ॥ वलिर्भूतानन्दो वेणुदार्हिरिस्सहः अग्निमाणको विशिष्टः । जल(सयलहस्साई ) लाख (पूजा) पचास (चन्तालीसा) चालीस लाख (दाहिओ) दक्षिणदिशा में (हुति) हैं (भवणाई) भवन ॥१३२॥
(तीसा) तीस ( चालीसा) चालीस (चउतीसं) चौतीस (चेव) और ( ससस्साई ) लाब ( छायाला) छयालीस (छत्तीसा) छत्तीस (उत्तरओ) उत्तर दिशा में (हुति) हैं (अवगाइ ) भवन ॥ १३३॥
(चउसट्ठी) चौसठ (सट्ठी) साठ (खलु) निश्चय (छच्च) छह (सहस्सा) हजार (असुरबज्जाण) असुरों को छोडकर (सामाणिआ उ एए) ये सामानिक देव हैं (चउग्गुणा आयरक्खा उ) आत्मरक्षक चौगुने हैं ॥१३४॥
( चमरे) चमर ( धरणे धरण (तह) तथा ( वेणुदेवे) वेणुदेव ( हरिकंते) हरिकान्त ( अग्गिसी हे य) अग्निसिंह (पुन्ने) पूर्ण (जलकंते य) और जलकान्त ( अमिय) अमित (विलम्बे ) विलम्ब (घ) और (घोसे य) घोष ॥१३५॥
(चउतीसा) तीस (चण्याला) युभातीस (अट्टतीसं ) उत्रीस (सयसहस्साइं ) साथ (पन्ना) पन्यास ( चत्तालीसा ) यासीस दाम (दाहिणओ) दक्षिण दिशामां (हुति) छे (भवणाईं) भवन ॥१३२॥
(तीसा) श्रीस ( चत्तालीसा ) थालीस (चउतीसं) यात्रीस (चेव ) अने (सयसहस्साईं) साण (छायाला) तालीस ( छत्तीसा) छत्रीस ( उत्तरओ) उत्तर हिशामां (हुति) छे (भवणाई ) लवन ॥१३३॥
(चउसठ्ठी) थे।सठ (सट्ठी) साठ ( खलु) निश्चय (छच्च) छे। (सहस्साइं ) हर (असुर वज्जाणं) मसुरोने छोडीने (सामाणिआउ एए) मा सामानि देव छे (चउग्गुणा आयरक्लाउ) आत्मरक्ष४ यार है ॥१३४॥
(चमरे) अभ२ (धरणे) ध२५ ( तह) तथा ( वेणुदेवे) वेलुदेव ( हरिकंते) रान्त (अग्गिसीहे य) अग्निसिड (पुन्ने) पूर्य (जलकंते य) मने सान्त ( अमिय ) अभित (विलम्बे ) विसभ्य (य) अने (घोसे य) घेोष ॥१३५॥
(बलि) जसी (भूयाणंदे) लूतानन्द ( वेणुदाली) वेगुहाली (हरिस्सहे ) (रिस्स
प्र० ९७