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________________ प्रमेयबोधिनी टीका द्वि. पद २ सू.२० सुवर्णकुमारदेवानां स्थानानि ७६७ खलु भदन्त ! औत्तराहाः सुवर्णकुमारा देवाः परिवसन्ति ? गौतम ! अस्या रत्न प्रभायाः यावत् अत्र खलु औत्तराहाणाम् सुवर्णकुमाराणाम् चतुस्त्रिंशद् भवनावासशतसहस्राणि भवन्ति इत्याख्यातम्, तानि खलु भवनानि यावत् अत्र खल बहवः औत्तराहाः सुवर्णकुमाराः देवाः परिवसन्ति, महद्धिकाः यावद् विहरन्ति, वेणुदालिश्चात्र सुवर्णकुमारेन्द्रः सुवर्णकुमारराजः परिवसति, महर्द्धिकः शेपं यथा नागकुमाराणाम् एवं यथा मुवर्णकुमाराणाम् वक्तव्यता भणिता तथा शेषाणामपि उत्तरिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ?) हे भगवन् ! उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देव कहां निवास करते हैं ? (गोयमा !) हे गौतम ! (इमीसे) इस (रयणप्पभाए) रत्नप्रभा के (जाव) यावत् (पत्थणं) यहां (उत्तरिल्लाणं) उत्तर दिशा के (सुवष्णकुमाराणं) सुपर्णकुमारों के (चउतीसं भवणावाससयसहस्सा) चौतीस लाग्च भवन (भवंतीति मक्खाय) हैं, ऐसे कहा है (ते णं भवणा) वे भवन (जाव) यावत् (एत्थणं) यहां (बहवे) बहुत (उत्तरिल्ला) उत्तरीय (सुवण्णकुमारा देवा) सुपर्णकुमार देव (परिवसंति) निवास करते हैं (महिडिया) महईिक (जाव) यावत् (विहरंति) विचरते हैं (वेणुदाली) वेणुदाली नामक (एत्थ) इनमें (सुवण्णकुमारिंदे) सुपर्णकुमारों का इन्द्र (सुवण्णकुमार राया) सुपर्णकुमारों का राजा (परिवसइ) निवास करता है (महिडिए) महान् ऋद्धि का धारक (सेसं जहा नागकुमाराणं) शेप जैसे नागकुमारों का । (एवं) इस प्रकार (जहा) जैसी (सुवण्णकुमाराणं) सुपर्णकुमारों परिवसंति ?) है सावन् । उत्तर दिशाना सुवर्ण भार हेव ४यां निवास ४२ छ ? (गोयमा ।) 3 गौतम । (इमीसे) 24. (रयणापभाए) २त्नप्रभान (जाव) यावत् (एत्थणं) गाडी (उत्तरिल्लाण) उत्त२ हिशान (मुपण्णकुमाराणं) सुपर्णसुभाना (चउतीसं भवणावाससयसहस्सा) यात्रीस सास भवन (भवंतीति मक्खायं) छे, मेम ४घु छे (ते णं भवणा) ते अपने। (जाव) यावतू (एल्थणं) माडि (बहवे) घर (उत्तरिल्ला) उत्तरीय (सुवण्णकुमारा देवा) सुवर्ष भा२ हेय (परिखसंति) निवास ४२ छ (महड्ढया) मद (जाव) यावत् (विदरति) वियरे छे (वेणुदाली) येशुदासी नाम (इत्थ) तेसोमा (सुवण्णकुमारिंदे) सुपाउभाराना) (इन्दे) छन्द्र (सुवष्णकुमार राया) सु मारानी Pun (परिपसइ) निवास ४२ छे. (महिड्ढिए) महान ऋद्विना पा२४ (सेसं जहा नागकुमाराणं) શેષ જેવું નાગકુમારનું કથન. (एवं) २॥ शते (जहा) म (सुवण्णकुमाराणं) सुपशु भाशनी (वत्तव्यया)
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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