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________________ "७४२ प्रतापनासूत्रे स्रोत्तरे योजनशतसहस्रे अत्र खलु दाक्षिणात्यानां नागकुमाराणाम् देवानाम् चतुश्चत्वारिंशद् भानावास शतसहस्राणि भान्ति इत्याल पातम्, तानि खलु भवनानि वहिवृतानि, यावत् प्रतिरूपाणि, अन खलु दाक्षिणात्यानां नागकुमाराणाम् पर्याप्तापर्याप्तनाम् स्थानानि प्रज्ञप्तानि, त्रिनपि लोकस्य असंख्येयभागे, अत्र खलु दाक्षिणात्या नागकुमारा देवाः परिवसन्ति, महद्धिका यावद् विहरन्ति, धरणः अत्र नागकुमारेन्द्रो नागकुमारराजा परिवसति, महर्द्धिको यावत् प्रभासयन, स खलु तत्र चतुश्चवारिंशतो भवनावासशतसहस्राणाम् पणाम् सामानिहित्ता) अवगाहन करके (हिट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता) और नीचे एक हजार योजन छोड कर (मज्झे) मध्य में (अट्टहुत्तरे जोयण. सयसहस्से) एक लाख अठहत्तर हजार योजन में (एत्य णं) यहां (दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं) दक्षिण दिशा के नागकुमार देवों के (चउयालीसं भवणावाससयसहस्सा) चवालीस लाग्य भवन (भवंतीति मक्खायं) हैं, ऐसा कहा है (ते णं भवणा) वे भवन (बाहिं वट्टा) बाहर से गोलाकार हैं (जाव पडिरूवा) यावत् प्रतिरूप हैं (एत्थ दाहिणिल्लाणं नागकुमाराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता) यहां दक्षिणी पर्याप्त और अपर्याप्त नागकुमारों के स्थान कहे हैं (तीसु वि लोयस्त असंखेज्जइभागे) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में (एत्थ णं) यहां (दाहिणिल्ला) दक्षिण के (नागकुमारा देवा) नागकुमार देव (परिवसंति) निवास करते हैं (महिडिया) महर्दिक (जाव विहरंति) यावत् विचरते हैं (धरणे) धरण नामक (इत्थ) यहां (ग्गं जोयणसहस्सं) मे उन२ योन (ओगाहित्ता) भगाउन प्रशने (हिट्ठा चेगं जोयणसहस्सं वज्जित्ता) गने नीये मे तार यौन छोडीन (मज्ञ) मध्यम (अदृहुत्तरे जोयणसयसहस्से) मे म २४योत्तर १२ योनिमा (एत्थणं) गाडी (दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं) lay हिशान नागभार हेवाना (चउयालीसं भवणावाससयसहस्सा) यासीस दास मन (भवंतीति मक्खायं) छ. ओम ४थु छ (तेणं भवणा) ते सपना (बाहिं वट्टा) 8थी - ४॥२ छ (जाव पडिरूवा) यावत् प्रति३५ छ (एत्थ णं दाहिणिल्लाणं नागकुमाराणं पज्जत्तापज्जत्ताणं ठाणा पणत्ता) माडी क्षिा शान पर्याप्त मने अपर्याप्त नागभाना स्थान ४ा छ (तीसु वि लोयस्स असंखेज्जइभागे) त्रणे अपेक्षासाथी सेना मध्यातमा लामा (एत्थण) माडी (दाहिणिल्ला) क्षिाना (नागकुमारा देवा) नाभार ४५ (परिवसंति) निवास ४२ छ (महिढिया) भधि (जाव विहरंति) यावत् वियरे छे (धरणे) ५२ नाम (एत्थण) माडी
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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