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________________ प्रज्ञापनासूत्रे प्रज्ञापना ? भगवानाह-'रूवि अजीवपण्णवणा चउबिहा पन्नत्ता' रूप्यजीवप्रज्ञापना, चतुविधा प्रज्ञप्ता, "तं-जहा-खंधा, खंघदेसा २, खंधपएसा ३, परमाणुपोग्गला' ४, तद्यथा-स्कन्धाः, स्कन्ध देशाः, स्कन्धप्रदेशाः, परमाणुपुद्गलाश्र, तत्र स्कन्दन्ति-शुष्यन्ति, धीयन्ते पुद्गलानां विचटनेन कृशी भवन्ति चटनेन पुष्यन्ति चेति स्कन्धाः, पृपोदरादित्वात् सिद्धिः, स्कन्धदेशास्तु-रकन्धानामेव स्कन्धत्वपरिणाममत्यजतो बुद्धिपरिकल्पिता द्वचादिप्रदेशात्मका विभागाः, अत्र अनन्तानन्तप्रादेशिकेषु तादृशेषु स्कन्धेषु देशानन्तत्वसंभावनार्थ बहुवचनोपादानम् , स्कन्धप्रदेशाः पुनः स्कन्धानां स्कन्धत्व परिणति परिणतानां बुद्धिविकल्पिताः प्रकृष्टादेशाः-विभागशून्या भागाः परमाणवः स्कन्धप्रदेशा वोध्याः, परमाणुपुदला: परमाश्चते अणवः परमाणवः निर्विभागद्रव्यरूपाः, ते च ते पुद्गलाश्चेति परमावह इस प्रकार-स्कंध, स्कंध देश, स्कंध प्रदेश और परमाणु पुद्गल । जो पुद्गल, अन्य पुदगलों के मिलने से पुष्ट होते हैं-बढ जाते हैं और पुद्गलों के हट जाने से कृश कमती पड़ जाते हैं। वे स्कंध कहलाते हैं। संस्कृत भाषा के अनुसार स्कन्ध शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार. हैं-'स्कन्दति-दृष्यन्ति धीयन्ते च पुष्पन्ते च' इति स्कन्धाः। धृषोदरादि से इस शब्द की सिद्धि होती है । स्कन्धत्व रूप परिणाम को न त्याग ने वाले स्कन्धों के ही बुद्धि कल्पित विप्रदेशी आदि विभाग स्कन्ध देश कहलाते हैं। यहां स्कन्ध देशाः, जो बहुवचनान्त प्रयोग किया है सो यह सूचित करने के लिए है कि किसी अनन्त प्रदेशी रकन्ध में स्कन्ध देश भी हो सकते हैं स्कन्ध में मिले हुए निर्विभाग अंश को स्कन्ध प्रदेश भी कहते हैं। अर्थात् जो परमाणु स्कन्ध में मिला है वह स्कन्ध प्रदेश कहलाता है। परम अणु परमाणु कहा जाता है अर्थात् કંધ, સ્કંધ દેશ, સ્ક ધ પ્રદેશ અને પરમાણુ યુગલે બીજા પુગલના મળવાથી પૂર્ણ થાય છે વધી જાય છે અને પુદ્ગલેના ઘટી જવાથી ઘટી જાય છે. તેઓ સ્કન્ય કહેવાય છે. સસ્કૃત ભાષાનુસાર સ્કંધ શબ્દની વ્યુત્પત્તિ આ शते छे स्कंदति धीयन्ते च पुष्यन्ते च इति स्कन्या । पृष॥४२ ४थी २८ ६ સિદ્ધ થાય છે. સ્કંધત્વ રૂપ પરિણામને ન ત્યજનાર, સ્કે ધનાજ બુદ્ધિકલ્પિત दि अशी विगेरे विमा २४५ हेश उपाय छे. मिडीयां स्कध देशा. मेवर બહુવચનાન્ત પ્રયાગ કર્યો છે તે એમ સૂચન કરવા માટે છે કે કેઈ અનન્તપ્રદેશી સ્કન્દમાં અનન્ત દેશ પણ બની શકે છે, સ્ક ધમાં મળેલા નિવિભાગ અંશને સ્કંધ પ્રદેશ પણ કહે છે અર્થાત્ જે પરમાણુ સ્ક ધ મળે છે તે સ્ક ધ પ્રદેશ કહે पाय छे. परम अणु. ५२मा ४३वाय छे. मात् मे पुद्दा द्रव्य ना
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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