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________________ प्रयापनास वेदनाः, अत्र खलु नैरयिकाणां पर्याप्तापर्याप्तकानां स्थानानि प्रज्ञप्तानि । उपपातेन लोकस्यासंख्येयभागे, समुद्घातेन लोकस्यासंख्येयभागे, स्वस्थानेन लोकस्यासंख्येयभागे, अत्र खल बहवो नैरयिकाः परिवसन्ति-कालाः कालावभासाः गम्भीरलोमहर्पाः भीमाः उत्त्रासनकाः परमकृष्णा वर्णन प्रज्ञप्ताः श्रममायुष्मन् ! ते खलु तत्र नित्यं भीताः, नित्यं त्रस्ताः, नित्यं त्रासिताः, नित्यमु. द्विग्नाः, नित्यं परमासुखसंवद्धं नरकभयं प्रत्यनुभवन्तो विहरन्ति ।।०७।। टोका-अथ पर्याप्तापर्याप्सनेरयिकाणां स्थानादिकं प्ररूपयितुमाह- 'कहिणं भंते ! नेरइयाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता' हे भदन्त ! कुत्र खलु-कस्मिन् (उववाएणं लोयस्स असंखेनइभागे) उपपात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में (समुग्घाएणं लोयस्स असंखेजइभागे) समुद्घात की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में (सहाणेणं लोयस्स असंखेज्जइ. भागे) स्वस्थान की अपेक्षा लोक के असंख्यातवें भाग में (एत्थ णं बहवे नेरच्या परिवसंति) यहां बहुत-से नैरयिक निवास करते हैं (काला) काले (कालोभासा) काली आभा वाले (गंभीरलोमहरिसा) अत्यंत रोमांचकारी (भीमा) भयानक (उत्तासणगा) त्रासजनक (परमकण्हा वन्नेणं पण्णत्ता) अतीव कृष्ण वर्ण वाले कहे हैं (समणाउसो) हे आयुष्मन् श्रमण ! (ते णं तत्थ णिच्च भीया) वे वहां नित्य भयभीत रहते हैं (निच्च तत्था) नित्य त्रास युक्त हैं (निच्चं तसिया) नित्य त्रास पहुंचाए हुए (निच्वं उविग्गा) नित्य घबराए हुए (निच्वं परममसुहसंबद्धं णरगलयं पच्चगुभवमाणा) नित्य अत्यन्त अशुभ नरक के भय का अनुभव करते हुए (विहति) रहते हैं ॥७॥ (उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे) ७५पातनी अपेक्षा सोना सध्या . तमा लामा (समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे) समुद्धातनी अपेक्षा ४॥ मस यातमा मामा (सहाणेण लोयस्स असंखेज्जइमागे) २२स्थाननी अपेक्षाये दोन मसण्यातमा मामा (एत्थणं वहवे नेरइया परिवसति) मडिपशु! सधा न२थि४ निवास ४२ छ (काला) ॥ (कालोभासा) आणी मालाml (गंभीरलोमहरिसा) सत्य त रामाय४।२री (भीमा) अयान (उत्तासणगा) शासन (परमकण्हा वन्नेणं पण्णत्त) मती वाणा (समगाउसो) मायुष्मन श्रभो। (तेणं तत्य णिच्चं भीया) तो त्या नित्य भयभीत २७ छ (निच्वं तस्या) नित्य त्रास यु४त छ (निच्वं तसिया) ४४ वास २५ता से। (निच्वं उब्धिगा) नित्य (निच्च परमममुहसंबद्ध णरगमय पच्चगुभत्रमाणा) नित्य --- अत्यन्त शुम न२४ सय अनुसार ४२॥ २९॥ (विहरति) २७ छ ॥ ७ ॥
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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