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________________ प्रमेयबोधिनी टोका प्र. १ सू. ३ अरूप्यजीवप्रशापनानिरूपणम् मूलम्-से किं तं अरूवि अजीवपन्नवणा ? अरूविअजी वपन्नवणा दसविहा पन्नत्ता, तं जहा-धम्मस्थिकाए १, धम्मस्थिकायस्स देसे २, धम्मत्थिकायस्स पदेसा ३, अधम्मत्थिकाए ४, अधम्मस्थिकायस्स देसे ५, अधम्मत्थिकायस्स पदेसा ६. आगासस्थिकाए ७, आगासस्थिकायस्स देसे ८, आगासस्थिकायस्स पदेसा ९, अद्धासमए १० ॥सू०३॥ छाया-अथ का सा अरूप्यजीवप्रज्ञापना ? अरूप्यजीवप्रज्ञापना दशविधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-धर्मारितकायः१, धर्मास्तिकायस्य देशः २, धर्मास्तिकायस्य प्रदेशाः ३, अधर्मास्तिकायः ४, अधर्मास्तिकायस्य देशः ५, अधर्मास्तिकायस्य प्रदेशाः ६,आकागास्तिमायः ७, आकाशास्तिकायस्य देशः ८, आकाशास्तिकायस्य प्रदेशाः ९, अद्धासमयः १०, ॥ सू. ३॥ यद्यपि रूपि-अजीव प्रज्ञापना का निर्देश पहले किया गया है। फिर भी पूर्वोक्त न्याय से अल्प वक्तव्यता होने के कारण प्रथम अरूपि-अजीव प्रज्ञापना का निरूपण करते हैं सूत्रार्थ (से) अथ (किंत) वह क्या है ? (अरूवि अजीव पण्णवणा) अरूपी अजीव की प्रज्ञापना (अरूवि अजीव पण्णवणा) अरूपी अजीव की प्रज्ञापना (दसविहा) दा प्रकार की (पण्णत्ता) कही है (तं जहा) वह इस प्रकार (धम्मत्थिकाए) धर्मास्तिकाय (धम्मत्थिवायस्स देसे) धर्मास्तिकाय का देश (धम्मत्थिकायरस पदेसा) धर्मास्तिकाय के प्रदेश (अधम्मत्थिकाए) अधर्मास्तिकाय (अधम्मत्थिकायस्सदेसे) अधर्मास्तिकायका देश (अधम्मत्थिकायस्स पदेसा) अधर्मास्तिकायके प्रदेश (आगासत्थि કે રૂપી–અજીવ પ્રજ્ઞાપનાનો નિર્દેશ પહલાં કરાયું છે. તે પણ પૂર્વોકત ન્યાયે અલ્પત્વતા હોવાને કારણે પ્રથમ અરૂપી–અજીવ પ્રજ્ઞાપનાનું નિરૂપણ કરે છે सूत्राथ—(से) २मथ (किं त) ते शुछ (अरूवि अजीवपण्णवणा) १३पी204नी प्रज्ञापन। (अरूवि अजीवपण्णवणा) २५३पी मनी प्रज्ञायना (दसविहा) ४२ ४२नी (पण्णत्ता) ४ी छ (त जहा) ते मारे (धम्मत्थिकाए) यस्ति४ाय (धम्मत्थिकायस्स देसे) घास्तियन। हेश (धम्मत्थिकायस्स पदेसा) घास्तियने। प्रदेश (अधम्मस्थिकाए) अवस्तिय (अधम्मस्थिकायस्स देसे) अध प्र०५
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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