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________________ प्रमेयवोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३९ समेदवीतरागदर्शनार्यनिरूपणम् ४७ रागदर्शनार्याश्च, वुद्धवोधितछझस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याश्च ? अथ के ते स्वयंबुद्धछमस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याः ? स्वयम्बुद्ध छद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याः द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-प्रथमसमयस्वयम्बुद्धछास्थक्षीणकषायवीत. रागदर्शनार्याश्च, अप्रथमसमयरवयम्बुद्ध छद्मस्थक्षीणकपायचीतरागदर्शनार्याच, अथवा-चरमसमयस्वयम्बुद्धछद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शनार्याश्च । अचरमसमयस्वयम्बुद्धछद्मस्थक्षीणकपायवीतरागदर्शनार्याश्च । ते एते स्वयम्बुद्धछद्मस्थक्षीणकपायवीतरागदर्शनार्याः । अथ के ते बुद्धबोधित छद्मस्थक्षीणकषायवीतरागदर्शछद्मस्थ क्षीणकषाय वीतराग दर्शनार्य और बुद्धवोधित छद्मस्थ क्षीण कषाय वीतराग दर्शनार्य । (से किं तं सय युद्धखीण०) स्वयं बुद्ध छदमस्थ क्षीणकलाय वीतरागदर्शनार्य कितने प्रकार के हैं ? (दविहा पण्णत्ता तं जहा) दो प्रकार के कहे हैं, यथा (पढमसमयसयं बुद्धछउ० य अपढमसमयसय बुद्धछउ० य) प्रथम सभयवर्ती स्वयं'बुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य और अप्रथम समयवर्ती स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीपकषाय वीतरागदर्शनार्य (अहवा) अथवा (चरिमसमयसय बुद्ध य अचरिमसमयसयं बुद्ध०) चरम समयवर्ती स्वयं बुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य और अचरम समयवर्ती स्वयंबुद्ध छदमस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य (से तं सयंवुद्धछउम०) यह स्वयंवयुद्ध छद्मस्थ क्षीणकषाय वीतरागदर्शनार्य की प्ररूपणा हुई। ___(से किं तं वुद्धघोहियछउमत्थ० ?) बुद्धयोधित छदमस्थ क्षीणक सरं बुद्ध छउमस्थखीण० बुद्धमोहिय छउमत्यखीण०) २५य मुद्ध छभस्थ क्षी पाय વીતરાગ દર્શનાર્ય અને બુદ્ધ બધિત છદ્મસ્થ ક્ષણિકષાય વીતરાગ દશના (से कि तं सयंबुद्धखीण० १) स्वय मुद्ध छ स्थक्षी ४ाय पीताश नाय Bean ४२॥ छ ? (सयंबुद्धखीण०) स्वय सुद्ध छस्थक्षी पाय वीतराशनाय (दविहा पण्णत्ता त जहा) मे २0 ४ा छे रेभ (पढमसमयसयंयुद्ध० य अपदमसमयसयंबुद्धछउ० य) प्रथमसमयवतीय मुद्ध भस्थ क्षी ४ाय वीतरामशः નાય અને અપ્રથમ સમયવતી સ્વયં બુદ્ધ છમસ્થ ક્ષીણકષાય વીતરાગ દર્શનાર્ય, (अहवा) अथवा (चरिमसमयसयंबुद्ध० य अचरिमसमयसयंवुद्व०) ५२मयमय વતી સ્વયંબુદ્ધ છદ્મસ્થ ક્ષીણકષાય વીતરાગદશનાય અને અચરમ સમયવતી स्वयमुर छभयक्षी पाय पीत नाय (से तं सबुद्धछउ०) मा સ્વય બુદ્ધ છદ્મસ્થ ક્ષીણકષાય વીતરાગ દર્શનાર્યની પ્રરૂપણ થઈ, (से कि त बुद्धयोहिय छउमत्थ० ?) मुद्ध गाधित छमस्य क्षी४पाय पीत शनाय ॥ ५३२॥ छ ? (बुद्ववोहियछउमत्थ०) सुध मोचित ७५
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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