SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 490
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ %3 प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३९ समेददर्शनार्यनिरूपणम् निश्शङ्कितो निष्काक्षितः, निर्विचिकित्सा अम्मूढदृष्टिश्च । उपबृहण स्थिरीकरणे, वात्सल्य प्रभावना अष्ट ॥१४॥ ते एते सरागदर्शनार्याः । टीका-अथ दर्शनार्यान् प्ररूपयितुमाह-से कि तं ईसणारिया ?' -अथ के तेकतिविधा दर्शनार्याः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह-'दसणारिया दुविहा पण्णता'-दर्शनार्याः द्विविधाः प्रज्ञताः, 'तं जहा'-तद्यथा-'सरागसणारियाय' --सरागदर्शनाश्चि, 'वीयरागदसणारिया य-वीतरागदर्शनार्याच, तत्र सराग-रागेण-कपा येण सहितं दर्शनम् आर्य ये ते, तथाविधेन वा आर्याः श्रेष्ठाः सरागदर्शवालों तथा मिथ्याष्टियों से दूर रहना (सम्मत्तसदहणा) वह समस्यक्त्व-श्रद्धा है । (१३) (निस्तंकिय) शंका काम करना (निक्कंचिय) कांक्षा न करना (निधितिगिच्छा) घृणा न करना या धर्म के फल में संदेह न करना (अमूढदिट्ठी य) मूढ दृष्टि न होना (उबवूह) अपने गुणों को और शासन को बढाना (थिरीकरणे) धर्म से चलायमान आत्मा और पर को स्थिर करना (वच्छल्ल) सार्मिकों पर प्रीति करना (पभावणा) प्रभावना करना (अ) ये आठ दर्शन के आचार हैं । (१४) (से तं सरागदसणारिया) यह सरागदर्शनार्य की प्ररूपणा हुई ॥३९॥ टीकार्थ-अब दर्शनार्यो की प्ररूपणा की जाती है । प्रश्न है कि दर्शनार्य कितने प्रकार के हैं ? भावान ने उत्तर दिया-दर्शनार्य दो प्रकार के कहे हैं:-सरागदर्शनार्य और वीतरागदर्शनार्य । जो दर्शन राग अर्थात् कषाय से युक्त होता है, वह सरागदर्शन (निःसंकिय) २४ न. ४२वी (निस्कंखिय) ४१क्षा न ४२वी (निवित्तिगिच्छा) धृ। न ४२वी अथवा यम ना ३०मा स हेड न ४२३। (अभूढदिवी) भूट ष्टि न थयु (उबवूए) पोताना मुखाने मने शासनने पधारयु (थिरीकरणे) भथी ચલાયમાન આત્મા અને પરને સ્થિર કરવાં (વછર૪) સાધમીઓ પર પ્રીતિ २१४वी (पभावणा) प्रभावना ४२वी (अट्ठ) २ मा ६शनना माया२ छ (१४) (से त सरागदसणारिया) 21 स२॥२॥ शनायनी ५३५ २४. ટીકા_હવે દર્શનાર્યોની પ્રરૂપણ કરાય છે આ વિષયમાં ગૌતમસ્વામી પ્રભુશ્રીને પ્રશ્ન કરતાં કહે છે કે દર્શનાર્થે કેટલા પ્રકારના છે? - શ્રી ભગવાને ઉત્તર આપે-દર્શનાર્ય બે પ્રકારના તે–સરાગદર્શનાર્ય અને વીતરાગ દર્શનાર્ય. જે દર્શન રાગ અર્થાત્ કપાયથી યુક્ત હોય છે તે સરાગદશન કહેવાય
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy