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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र.१ सू. २ अजीवप्रज्ञापनानिरूपणम् छाया-अथ का सा अजीवप्रज्ञापना ? अजीवप्रज्ञापना द्विविधा प्रज्ञप्ता, तघथा रूप्यजीव प्रज्ञापना च, अरूप्यजीवप्रज्ञापना च ॥सू० २॥ ___टीका-'से' अथ, 'किं तं' किं तत्, अथवा का सा, 'अजीवपन्नवणा'-अजीव प्रज्ञापना प्रज्ञप्ता ? इति शेषः, अजीवप्रज्ञापना कतिविधा वर्तते ? इति प्रश्नाशयः, भगवानाह-'अजीवपन्नवणा' अजीवप्रज्ञापना, 'दुविहा पण्णत्ता' द्विविधा प्रज्ञप्ता, 'तं जहा' तद्यथा, 'रूवि अनीवपन्नवणा य' रूप्यजीवप्रज्ञापना च, अरूवि अनीवपन्नवणा य' अरूप्यजीवप्रज्ञापना च, तत्र रूपमस्ति एपामिति रूपिणः, रूपग्रहणेन गन्धरसस्पर्शा अपि उपलक्ष्यन्ते, गन्धादिव्यतिरेकेण रूपासम्भवात् । अन्वयार्थ-(से किं तं अजीव पण्णवणा) अजीव प्रज्ञापना का स्वरूप क्या है ? (अजीव पण्णवणा दुविहा पण्णत्ता) अजीव प्रज्ञापना दो प्रकार की कही है ? (तं जहा) वह इस प्रकार (रूवि अजीव पण्णवणा) रूपी अजीव की प्रज्ञापना (य) और (अरूवि अजीव पण्णवणा) अरूपी अजीव की प्रज्ञापना ॥२॥ ___टीकार्थः-अजीव प्रज्ञापना किसको कहते है, अर्थात् अजीव प्रज्ञापना कितने प्रकार की है ? श्रीभगवान् उत्तर देते हैं-रूपी अजीव प्रज्ञापना और अरूपीअजीव प्रज्ञापना । जिस में रूप हो वह रूपी कहलाता है। रूप के ग्रहण से गन्ध, रस और स्पर्शका ग्रहण भी समझ लेना चाहिए, क्योंकि ___ मन्वयार्थ (से किं तं अजीव पण्णवणा) १०१ प्रज्ञायनानु २१३५ शु छ ? (अजीव पण्णवणा दुविहा पण्णत्ता) २००१ प्रज्ञापन प्रा२नी छ) (तं जहा) ते २॥ प्रारे (रूवी अजीव पण्णवणा) ३५ मपनी प्रज्ञापन (य) मने. (अरूवि अजीवपण्णवणा) २५३पि म0पनी प्रज्ञापन। ॥ २ ॥ ટીકાર્થ—અજીવ પ્રજ્ઞાપના કોને કહેવાય ? શ્રી ભગવાન ઉત્તર આપે છે–રૂપી અજીવ પ્રજ્ઞાપના અને અરૂપી અજીવ પ્રજ્ઞાપના જેમાં રૂપ હોય તે રૂપી કહેવાય છે રૂપના ગ્રહણથી ગબ્ધ, રસ અને સ્પર્શનું ગ્રહણ પણ સમજવું જોઈએ કેમકે ગળ્યાદિના અભાવમાં એકલા રૂપને લેવું
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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