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________________ 방방 प्रज्ञापनासूत्रे 'से किं तं इडिपत्तायरिया ?' - ' से' - अथ के ते - कतिविधा इत्यर्थः ऋद्धि प्राप्ता: ? भगवानाह - 'इडिपत्तायरिया छव्विहा पण्णत्ता' - ऋद्धिप्राप्तार्याः पड़विधाः प्रज्ञताः 'तं जहा' - तथथा - 'अरहंता' - अर्हन्तः १, 'चक्कबट्टी' - चक्रवर्तिनः २, 'वलदेवा' - बलदेवाः ३, 'वासुदेवा' वासुदेवा: ४, 'चारणा' - चारणाः ५, 'विज्जाहरा' विद्याधराः६,–प्रकृतमुपसंहरन्नाह - ' से तं इड्डिपत्तायरिया' - ते एते - पूर्वोक्ताः, ऋद्धि प्राप्तार्याः प्रज्ञप्ताः । अथावृद्धि प्राप्तार्यान् प्ररूपयितुमाह - 'से किं तं अणिडिपत्तायरिया ? -अथ के ते कतिविधा इत्यर्थः अनृद्धिप्राप्तार्याः प्रज्ञप्ताः ? भगवानाह - 'अणिडिपत्तायरिया वविहा पण्णत्ता ?' - अनृद्धिप्राप्तार्या नवविधाः : - नव प्रकारकाः प्रज्ञप्ताः, 'तं जहा ' तद्यथा - ' खेत्तारिया' - क्षेत्रार्या: १, 'जाति आयरिया' - जात्यार्याः २, 'कुलारिया ' कुलार्याः ३, 'कम्मायरिया' - कर्मार्याः ४, 'सिप्पारिया' - शिल्पार्याः ५, 'भासारिया' भापार्याः६, ‘नाणारिया’--ज्ञानार्या : ७, 'दंसणा रिया' - दर्शनार्याः ८, 'चारितारिया' चारित्रार्याश्च तत्र क्षेत्रम् - उत्पत्तिस्थानम् आर्य- श्रेष्ठं क्षेत्रं येषां ते क्षेत्रार्याः की ऋद्धि प्राप्त हो वे ऋद्धिप्राप्त आर्य कहलाते हैं और जिन्हें कोई ऋद्धि प्राप्त न हो, मगर आर्य हो वे अमृद्धिप्राप्त आर्य कहे गए हैं । " अब ऋद्धिप्राप्त आर्यों की प्ररूपणा का जाती है - ऋद्धिप्राप्त आर्य कितने प्रकार के हैं ? भगवान् ने कहा- वे छह प्रकार के होते हैं - (१) तीर्थकर (१) चक्रवर्त्ती (३) बलदेव (४) वासुदेव (५) चारण और (६) विद्याघर | ये ऋद्धिप्राप्त आर्य हैं । अनुद्धिप्राप्त आर्य नौ प्रकार के हैं । वे इस प्रकार हैं- (१) क्षेत्रार्य (२) जात्यार्य (२) कुलार्य (४) कर्मा (५) शिल्पार्य (६) भाषा (७) ज्ञानार्य (८) दर्शनार्य और (९) चारित्रार्य क्षेत्र अर्थात् जन्म स्थान जिनका श्रेष्ठ हो वे क्षेत्रार्य कहलाते हैं, क्योंकि वे श्रेष्ठ क्षेत्र में उत्पन्न हुए हैं । जिनकी आगे कही जाने वाली હવે રૂદ્ધિપ્રાસ આĆની પ્રરૂપણા કરાય છે રૂદ્ધિપ્રાપ્ત આ કેટલા પ્રકારના છે ? श्री लगवाने उ-तेसो छ प्रहारना छे (होय छे) - (१) तीर्थ ४२ (२) यवर्ती (3) जसदेव (४) वासुदेव (4) थारण भने (६) विद्याधर भा३द्धि પ્રાપ્ત આ છે. अनृद्धियास सार्य नौ अझरना छे. तेथे या रीते - (१) क्षेत्रार्य (२) न्नत्यार्य (3) सार्थ (४) उर्भार्य (4) शिचार्य (६) भाषार्य (७) ज्ञानार्य (८) दर्शनार्य (2) यारित्राय ક્ષેત્ર અર્થાત્ જન્મ સ્થાન જેએનુ શ્રેષ્ઠ હાય તેઓ ક્ષેત્રાય કહેવાય છે.
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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