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________________ प्रमैयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.३४ खेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः . ४२३ सप्ताऽष्ट-जातिकुलकोटिलमाणि, नव-अर्द्धत्रयोदशानि च । दश दश च भवन्ति नव, तथा द्वादश चैव वोद्धव्यानि ॥१॥ ते एते खचरपञ्चेन्द्रियतिर्यज्योनिकाः । ते एने पश्चन्द्रियतिर्यग्योनिकाः ।सू०३४। टीका-अथ खेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकान् प्ररूपयितुमाह-'से किं तं खहयरपंचिंदियतिरिक्जोणिया'-'से' अथ 'कि त'-केते, कतिविधा इत्यर्थः 'खहयरपंचिंदियतिरिक्खजोणिया'- खेचरपञ्चेन्द्रिपतिर्यग्योनिकाः प्रज्ञाताः ? भग वानाह-'खहयरपंचिंदियतिरिकख जोणिया' खेचरपञ्चेन्द्रियतिर्यग्योनिकाः 'चउबिहा पण्णत्ता'-'चतुर्विधाः तुप्ताः, 'तं जहा' तद्यथा, 'चरमपक्खी, लोमपक्खी, लाख, त्रीन्द्रियों की आठ लाग्न, चौइन्द्रियों की नौ लाख, जलचरों की साढे बारह लाख योनियां हैं (दस दसय होति नवगा तह वारस 'चेव बोदव्या) चतुष्पदों की दस लाख, उरपरिलो की दस लाख, भुजपरिमों की नौ लाख, और खेचरों की बारह लाख योनियां जानना चाहिए । (से तं खयरपंचिंदियतितिक्खजोणिया) यह खेचर पंचेन्द्रियों की प्ररूपणा हुई (से तं पंचिंदियतिरिक्खजोणिया) यह खेवरपंचेन्द्रिय तिर्यचों की प्ररूपणा हुई ॥३४॥ टीकार्थ-अब खेचर अर्थात् आकाश में विचरण करने वाले पंचेन्द्रिय तिर्यचों की प्ररूपणा की जाती है । खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच कितने प्रकार के होते हैं ? इस प्रश्न का भगवान् ने उत्तर दिया-खेचरपंचेन्द्रिय तिर्यंच चार प्रकार के होते हैं। वे चार प्रकार यों हैं-चर्मपक्षी, ત્રિીન્દ્રિયની આઠ લાખ, ચાર ઇન્દ્રિયની ની લાખ, જલચરની સાડા બાર elu योनियो छ (दस-दस य होति नवगा तह बारस चेव बोद्धव्या) ॥५॥ ની દશ લાખ, ઉર પરિ સર્પોની દશ લાખ, ભુજપરિ સર્પોની નૌ લાખ અને બેચરોની બાર લાખ નિ જાણવી જોઈએ (से तं खहयक पंचिंदियतिरिक्खजोणिया) २ य२ पयन्द्रिय तिय"य योनीती प्र३५ था (से त्त पंचिंदियतिरिक्खजोणिया) PAL ५ येन्द्रिय तिय"य નીકેની પ્રરૂપણ થઈ સૂ ૩૪ છે ટીકાથ–હવે ખેચર એટલે આકાશમાં વિચરણ કરવાવાળા પંચેન્દ્રિય તિર્યંચોની પ્રરૂપણ કરાય છે બેચર પંચેન્દ્રિય તિર્યંચ કેટલા પ્રકારના હોય છે ? આ પ્રશ્નને ભગવાન ઉત્તર આપે છે–ખેચર પચેન્દ્રિય તિય ચાર પ્રકારના હોય છે.
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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