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________________ ४०० प्रज्ञापनासूत्रे theast अपि, योजनशतमपि, योजनशतपृथक्त्वका अपि, योजनसहस्रमपि । तें खलु स्थले जाताः, जलेsपि चरन्ति स्थलेऽपि चरन्ति, ते न सन्तीह, वालेषु द्वीपेषु समुद्रेषु भवन्ति ये चान्ये तथाप्रकाराः, ते एते महोरगाः । ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञताः, तद्यथा संमूर्छिमाथ, गर्भव्युत्क्रान्तिका । तत्र खलु येते मूर्छिमस्ते सर्वे पुंकाः । तत्र खलु ये त गर्भव्युत्क्रान्तिकास्ते खलु त्रिविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - स्त्रियः, पुरुषाः नपुंसकाः एतेषां खलु एवमादिकानां पर्याप्ताभी ( जोयणपुत्तिया वि) दो से नौ योजन के भी (जोपणसयं पि) सौ योजन के भी (जो सयपुहुत्तिया वि) दोसौ से नौ सौ योजन के भी ( जोयणसहस्सं पि) हजार योजन अवगाहना के भी होते हैं । (ते णं थले जाया) वे स्थल में उत्पन्न होते हैं (जले वि चरंति थले वि चरंति) जल में भी विचरण करते हैं, थल में भी विचरण करते हैं । (ते णत्थि इहं) वे यहां नहीं होते ( वाहिरए दीवेसु समुद्देसु हवंति ) मनुष्य क्षेत्र से बाहर के द्वीप समुद्रों में होते हैं (जे यावन्ने तहष्पगारा) अन्य जो ऐसे हैं । (सेतं महोरगा ) यह महोरगों की प्ररूपणा हुई । (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) उरपरिसर्प संक्षेप से दो प्रकार के कहे हैं (संच्छिमाय गभवक्कंतिया य) संमूर्छिम और गर्भज (तत्थ णं जे ते समुच्छिमा) इनमें जो संमूर्छिम हैं (ते सव्वे नपुंसगा) वे सभी नपुंसक हैं । (तत्थ णं जे ते गम्भवक्कतिया) उनमें जो गर्भज हैं (ते णं तवा पण्णत्त) वे तीन प्रकार के कहे हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार (इत्थी पुरिसा नपुंसगा) स्त्री, पुरुष, नपुंसक (एएसि णं एवमाइयाणं 1 (जोयण पुहुत्तिया वि) मसोथी नवसो योजन सुधीना पशु (जोयण सयं वि) सो योन्जन प्रमाणु पशु ( जोयण सयपुहुत्तिया वि) असो थी नवसो योजन पशु (जोयणसहस्सं वि) हुन्नर योजननी अवगाहनाना पशु होय छे ( ते ण थले जाया) तेथे स्थाणमा उत्पन्न थाय छे (जलेवि चरंति थले वि चरति) नभा पाए विवरण उरे, याममा पशु वियर उरे छे. (ते णत्थि 'इहं) तेथेो भाडी नथी थता (बाहिए दीवेसु समुद्देसु हवंति ) मनुष्य क्षेत्रना महारना द्वीप समुद्रमा थाय छे (जे यावन्ने तह पगारा) मील के खावा छे (सेत्तं महोरगा ) या महोगनी उषा थ ( ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) २परिसर्प संक्षेपथी थे प्रारना ह्या छे. ( संमुच्छिमा य गन्भवतिया य) स भूमि भने गर्ल (तत्थणं जे ते संमूच्छिमा) तेभा ने समूर्छिम छे (ते सव्वे नपुंसगा) तेथे। अधा नपुंसक छे (तत्थ णं जे ते गब्भवक्कंतिया) तेथेोभा ने गर्भ छे (तेगं तिविहा पण्णत्ता) तेथे ऋशु अारना छे (तं जहा) ते था अारे (इत्थि, पुरिसा, नपुंसगा) स्त्री, पु३ष, नपुंसक
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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