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________________ प्रज्ञापनासूत्रे मूलम् - से किं तं नेरइया ? नेरइया सत्तविहा पण्णत्ता, तं. जहा रयणप्पभापुढवीनेरइया १, सक्करप्पभापुढवीनेरइयार, वालुयप्पभापुढवौनेरइया३, पंकप्पभापुढवीनेरइया ४, धूमप्पभापुढवीनेरइया५, तमप्पभापुढवीनेरइया६, तमतमप्पभापुढवीनेरइया ते समासओ दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-पजत्तगाय अपजत्तगा य। से तं नेरइया ॥ सू०२९ ॥ छाया-अथ के ते नैरयिकाः ? नैरयिकाः सप्तविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा - रत्नप्रभा - पृथिवीनैरयिका : १, शर्कराप्रभापृथिवी नैरयिकाः २, बालुकाप्रभा पृथिवी नैरयिकाः ३, पङ्कप्रभा पृथिवी नैरयिका : ४, धूमप्रभा पृथिवी नैरयिका: ५, तमः प्रभापृथिवी नैरयिकाः ६, तमस्तमः प्रभापृथिवी नैरयिकाः । ते समासतो द्विविधा प्रज्ञप्ताः तद्यथा - पर्याप्तकाश्च, अपर्याप्तकाश्च । ते एते नैरयिकाः ||सू०२९|| ३६२ शब्दार्थ - ( से किं तं नेरइया ?) नैरयिक कितने प्रकार के हैं ? ( सत्तविहा पण्णत्ता) सात प्रकार के हैं (तं जहा ) वे इस प्रकार हैं ( रयपुढवीणेरइया) रत्नप्रभा पृथ्वी के नारक (सक्करप्पभा पुढवीणेरइया) शर्कराप्रभा पृथ्वी के नारक (बालुयप्पभा पुढवीणेरइया) वालुकाप्रभा पृथ्वी के नारक (पंकप्पभा पुढवीणेरइया) पंकप्रभा पृथ्वी के नारक (धूमप्पभा पुढचीणेरइया) धूमप्रभा पृथ्वी के नारक (तमप्पभा पुढवीणेरड्या) तमाप्रभा पृथ्वी के नारक (तमतमप्पभा पुढवीणेरइया) तमस्तमः प्रभा पृथ्वी ने नारक (ते समासओ दुबिहा पण्णत्ता) संक्षेप से वे दो प्रकार के कहे हैं (तं जहा) यह इस प्रकार (पज्जत्तगा य अपज्जत्तगा ) पर्याप्तक और अपर्याप्तक (से तं नेरइया) यह नैरयिकों की प्ररूपणा हुई || २९॥ शब्दार्थ - (से कि तं नेरइया १) रयि डेटा प्रारना छे ? (नेरइया सत्त विहा पण्णत्ता) नैरयि लवासात हारना उसा छे (तं जहा ) ते या अक्षरे ( रयणापभाणेरइया) रत्नग्रला पृथ्वीना पृथ्वीना ना२४ ( सक्करपभापुढवि नेरइया) शरायला पृथ्वीना ना२४ (वालुयप्पभापुरवि नेरइया) वालुअअला पृथ्वीना नार (पंकापभापुढवि नेरइया) पडला पृथ्वीना ना२४ ( धूमप्पभापुढवि नेरइया) धूभयला पृथ्वीना ना२४ (तम पभापुढवि नेरइया) तभ प्रलापृथ्वी नार४ (तम तमप्पभापुढवि नेरइया) तभतभापृथ्वीना ना२४ (ते समासओ दुविहा पण्णत्ता) तेथे स क्षेत्रथी मे प्रारा ४ह्या छे (तं जहा) ते भा रीते (पज्जतगाय अपजत्तगा य) पर्याप्त मने अपर्याप्त४ (से त्तं नेरइया) या नैरयिोनी प्राथ. ॥ सू. २७ ॥
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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