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________________ प्रमेयबोधिनी टीका प्र. पद १ सू.२३ वीजावस्थानिरूपणम् ___टीका-अथ कि बीजजीव एव मूलादि जीवो भवति, आहोस्थित् तस्मिन् अपगते सति अन्यो जीव उत्पद्यते ? इत्याशङ्कायामाह-वीए जोणिभूए जीवो वक्कमइ सोव अन्नो वा । जोऽवि य मूले सोऽपिय पत्ते पहमाए' ॥९३॥ 'बीए' वीजे 'जोणिभूए'-योनि भूते-योन्यवस्था प्राप्ते-योनिपरिणाममपरित्यजति अयम्भावः-द्विविधाऽवस्था वीजस्य भवति-योन्यवस्था, अयोन्यवस्था च तत्र - यदा वीजं योन्यवस्थां न त्यजति अथ च जन्तुना उज्झितं भवति तदा तद् वीजं योनि भूतमित्यभिधीयते जन्तुना उज्झितञ्च निश्चयेन नावगन्तुं पार्यते तस्मादनतिशायिना साम्प्रतं स चेतनमचेतनं वा अविध्वस्तयोनिभूतमिति, माणो) उगता हुआ (अगंतओ) अनन्तकाय (अणिओ) कहा गया है (सो चेव) वही (विवड्तो ) बढता हुआ (होइ) होता है (परित्तो) प्रत्येक जीव (वा) अथवा (अगंतो) अनन्तजीव । ॥२३॥ टीकार्य-क्या बीज का जीव ही खूल आदि का जीव बन जाता है, अथवा उसके चले जाने पर अन्य जीव उत्पन्न होता है? ऐसी अर्शका होने पर कहते हैं बीज की दो अवस्थाएं होती हैं-योनि-अवस्था और अयोनिअवस्था । जय वीज योनि-अवस्था का परित्याग नहीं करता किन्तु जीव के द्वारा त्याग दिया जाता है, तब वह बीज योनिभूत कहलाता है। बीज जीव के द्वारा त्याग दिया गया है, यह छअस्थ के द्वारा निश्चयपूर्वक जाना नहीं जा सकता, अतएव आजकल चेतन या अचेतन, जो अविश्वस्तयोनि है, वह योनिभूत कहा जाता है। (सब्बोवि) या (किसलओ) ७ ५७ (खलु) निश्चये (उग्गममाणे) ती मते (अण तओ) मनन्तय (भणिओ) ४ा छ (सो चेव) ते (विवढंतो) धान (होइ) ने छ (परित्तो) प्रत्ये: ०१ (वा) अथवा (अण तो) मनन्त ७१. ॥सू. २३॥ ટીકાર્ય–શુ બીજના જીવજ મૂલ આદિના જીવ બની જાય છે, અથવા તેના ચાલ્યા ગયાથી અન્ય જીવ ઉત્પન્ન થાય છે ? આવી આશકા થવાથી કહે છે બીજની બે અવસ્થા હોય છે--મોનિ--અવસ્થા અને અનિ અવસ્થા. જ્યારે બીજ નિ અવસ્થાને પરિત્યાગ ન કરે પરંતુ જીવદ્વારા ત્યાગ કરી દેવાય છે. ત્યારે તે બીજ નિભૂત કહેવાય છે. બીજ જીવના દ્વારા ત્યાગી દેવાયેલ છે. આ છવાસ્થના દ્વારા નિશ્ચય પૂર્વક જાણી નથી શકાતું તેથી જ આજ કાલ સચેતન કે અચેતન જે અવિધ્યસ્ત એનિ છે. તે નિ ભૂત કહેવાય છે,
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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