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________________ प्रमेयवाधिनी टीका प्र. पद १ सू १७ वायुकायिकजीवभेदनिरूपणम् २३७ विदिग्वातः८, वातोद्भ्रामः९, बातोत्कलिका १०, वातमण्डलिका ११, उत्कलिकावातः१२, मण्डलिकावातः१३, शुञ्जावातः१४, झंझावातः१५, संवर्तकवातः१६, धनवातः१७, तनुवातः१८, शुद्धवात:१९, ये चान्ये तथाप्रकारास्ते समासतो द्विविधाः प्रज्ञप्ताः, तद्यथा-पर्याप्तकाश्थ, अपर्याप्तकाश्च । तत्र खलु ये ते अपर्याप्तकास्ते खलु असंप्राप्ताः, तत्र खलु ये ते पर्याप्तका एतेषां खलु वर्णादेशेन, गन्धादेशेन, रसादेशेन, स्पर्शादेशेन सहस्रग्रशो विधानानि, संख्येयानि, योनिनीची जाती हुई हवा (तिरियवाए) तिर्शी वायु (विदिसीवाए) विदिशा में चलने वाली हवा (वाउमाले) अनियत वायु (बाउकलिया) वातोत्कलिका वायु (वायमंडलिया) वातोली (उक्कलियावाए) उत्कलिका वायु (मंडलियावाए) मंडलिका वायु (गुजावाए) गुजावात-गुजती हुई वाय (झंझाचाए) वर्षा के साथ बहने वाली वायु (संवदृगवाए) प्रलयकालीन वायु (घणवाए) घनवात (तणुवाए) तनुवात (सुद्धवाए) शुद्ध वायु (जे यावन्ने तहप्पगारा) अन्य जो इसी प्रकार के वायुकायिक हैं (ते) वह (समासओ) संक्षेप से (दविहा) दो प्रकार के (पण्णत्ता) कहे हैं (तं जहा) वे इस प्रकार हैं (पज्जत्तगाय) पर्याप्तक और (अपज्जत्तगाय) अपर्या. प्तक (तत्थ) इनमें (जे ते) जो (अपज्जत्तगा) अपर्याप्त हैं (ते ण) वे (असंपत्ता) अप्राप्त हैं (तत्थ णं) उनमें (जे ते) जो (पज्जत्तगा) पर्याप्त हैं (एएसि णं) इनके (वण्णादेसे गं) वर्ण को अपेक्षा से (गंधादेसेणं) गंध की अपेक्षा से (रसादेसेणं) रस की अपेक्षा से (फासादेसेणं) स्पर्श की अपेक्षा से (सहस्सग्गसो) हजारों (विहाणाई) भेद हैं (संखेज्जाई जोणिविदिशामा यासती वा (वाउन्मामे) मनियत वायु (वाउक्कालिया) पात४Last (वाउमंडलिया) पाती (उस्कलियावाए) Sales वायु (मंडलियावाए) भऽसि वायु (गुंजावाए) tand-lieu ४ ५१न. (झ झावाए) वर्षानी साथे पापा वायु (सवट्टगवाए) प्रसय जना पवन (घनवाए) धनपात (तणुवाए) तनुपात (सुद्धवाए) शुद्ध पायु. (जे यावन्ने तहप्पगारा) मा २ मा ४२ना पाय छ (ते) ते (समासओ) स पिथी (दुविहा) मे २ना (पण्णत्ता) ४ा छ (तं जहा) तेस। सा रे छे (पज्जत्तगाय) पर्यात अने. (अपजत्तगाय) २५५र्यात छे (तेण) तमा (असंपत्ता) मस प्रास छ (तत्यगं) तेममा (जे ते) रेमो (पज्जत्तगा) पति छ. (एएसिण) मेगाना (दण्णादेसेण) पनी अपक्षाये (गंधादेसेण) अपनी अपेक्षा (रसादेसेण) २सनी अपेक्षाये (फासादेसेण) २५शनी अपेक्षा (सहस्सग्गसो) । (विहाणाई) ले छ (मखेडजाइ जोणियाप मुदसय सहरसाई)
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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