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________________ प्रशापनासूचे (अनुष्टुप् छन्दः) तत्वविशारदो ज्ञानी, पट्कायप्रतिपालकः । ब्रह्मचर्यस्य गुप्तश्च, नवधा गुप्तिधारकः ॥४॥ एकादशाङ्गतत्त्वस्य गणिपीठकधारकः । ज्ञानक्रिया विशुद्धन्या च स्वात्मकाञ्चन शोधकः ॥५॥ वैराग्यदीप्तिदीप्तात्मा दीक्षाशिक्षा परायणः । तत्पट्टाधिष्ठिताचार्यः शिवलाल महामुनिः ॥६॥ ज्ञानध्यानतपस्त्याग-दयावैराग्यकर्मणाम् । सत्यचारित्रधर्माणां सर्वदोदयकारकः ॥७॥ तत्पदृस्थानमापन्नः पाखण्डमानमदेकः। विराजतां महाराज, आचार्योदयसागरः ॥८॥ मुनिवर अर्थात् आचार्य श्री हुकमचन्द्रजी महाराज जयवन्त हो। ४ तत्व में निष्णात, ज्ञानवान् , षट्काय के प्रतिपालक, ब्रह्मचर्य की नौ वाडों को धारण करने वाले, गुप्तिसम्पन्न ५ ग्यारह अंग, जो गणिपिटक अर्थात् आचार्य की पेटी कहलाते हैं, उनके धारक तथा ज्ञान और क्रिया की विशुद्धि से अपने आत्मारूपी काञ्चन को शुद्ध करने वाले ६ वैराग्य के तेज से तेजस्वी आत्मा वाले, दीक्षा और शिक्षा में तत्पर श्री शिवलालजी महामुनि आचार्य श्री हुकुमचन्द्रजी महाराज के पद पर आसीन हुए। .७ ज्ञान, ध्यान, तप, त्याग, दया, वैराग्य रूप क्रियाओं के तथा सत्य, चारित्र, और श्रमण धर्मों का सदैव उद्य करने वालेહકમચન્દ્રજી મહારાજ જયવન્ત હો. . ४:तम निved, ज्ञानस पन्न, पायना प्रतिपास४, ब्रह्मयय नी નવ વાડેને ધારણ કરવાવાળા, ગુણિયુક્ત- ૫ અગીયાર અગ, જે ગણિપિટક અર્થાત્ આચાર્યની પેટી કહેવાય છે તેને ધારણ કરનાર તેમજ જ્ઞાન અને ક્રિયાની વિશુદ્ધિથી પિતાના આત્મા રૂપી કાંચનને શુદ્ધ કરવાવાળા : ૬ વૈરાગ્યના તેજથી તેજસ્વી આત્માવાળા, દીક્ષા અને શિક્ષામાં તત્પર એવા શ્રી શિવલાલજી આચાર્ય શ્રી હુકમચન્દ્રજી મહારાજના પટ્ટ પર બિરાજ્યા. ___७ शान, ध्यान, तप, त्यान, या वैशय ३५ ठियामाना तथा सत्य, ચારિત્ર, અને શ્રમણ ધર્મોને સદા ઉદય કરનાર,
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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