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________________ १४६ प्रज्ञापनासूत्रे जे संठाणओ आययसंठाणपरिणया ते वण्णओ कालवण्णपरिणयाविर, नीलवपणपरिणया वि२, लोहियवष्णपरिणया वि३, हाfotaणपरिणया वि४, सुविलवण्णपरिणया वि५ । गंधओ सुभिगंध परिणया वि१, दुब्भिगंघपरिणयार । रसओ तित्तरसपरिणया विर, कडयरसपरिणया विर, कसायरसपरिणया वि३, अंबिलरसपरिणया वि४, महुररसपरिणया वि५ । फासओ कक्खड - फासपरिणया वि१, मउयफासपरिणया विर, गुरुयफासपरिणया विर, लहुयफासपरिणया वि४, सीयफासपरिणया वि५, उसिणफासपरिणया वि६, णिफासपरिणया वि७, लुक्खफासपरिणया वि८/२०/१००॥ सेतं रुवि अजीवपन्नवणा । सेतं अजीवपन्नत्रणा ॥ सू० ९॥ छाया - ये संस्थानतः परिमण्डलसंस्थानपरिणता स्ते वर्णतः कालवर्णपरिणता अपि १, नीलवर्णपरिणता अपि२, लोहितवर्णपरिणता अपि ३, द्रवर्णजता अपि४, शुक्लवर्णपरिणता अपि५ । गन्धतः सुरभिगन्धपरिणता अपि१, दुरभिगन्धपरिणता अपि२। रसतस्तिक्तरसपरिणता अपि १, कटुकरसपरिणता अपि२, शब्दार्थ - (जे) जो पुद्गल (संठाणओ) संस्थान की अपेक्षा से (परिमंडल संठाणपरिणया) परिमंडल संस्थान परिणमनवाले हैं (ते) वे (aण्णओ) वर्ण से ( कालवण्णपरिणया वि) काले वर्ण परिणाम वाले भी होते हैं (नीलवण्णपरिणया वि) नीले वर्ण परिणाम वाले भी होते हैं (लोहियaण्णपरिणया वि) लाल वर्ण परिणाम वाले भी होते हैं ( हालिद्दवण्णपरिणया चि) पीले वर्ण परिणाम वाले भी होते हैं (सुक्किल्लवण्णपरिणया वि) शुक्लवर्ण परिणाम वाले भी होते हैं । (गंधओ) गंध से (सुभिगंधपरिणया वि) सुगंध परिणाम वाले शब्दार्थ - (जे) ने युद्दगतेो (संठाणओ) सस्थाननी अपेक्षाओ (परिमंडल संठाणपरिणया) परिभउस संस्थान परिणामवाणा छे (ते) तेथे (वण्णओ) वर्षाथी ( कालवण परिणया वि) अजारंगना परिणाभवानां पशु छे (नीलवण्णपरिणया वि) नीस (सास) वा परिशुभिवाजा पशु छे. (लोहियवण्णपरिणया त्रि) सास रंगना परिणाभवाणां पशु छे ( हालिद्दवण्णपरिणया वि) पीजा रजना परिणाभवाजां छे (सुकिल्लवण्णपरिणया वि) शुद्ध वर्षा परिणाभवाना पशु मने छे. (गंधओ) गधथी (सुभिगंध परिणया वि) सुगंध परिणामवाणां पशु होय પણ
SR No.009338
Book TitlePragnapanasutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages975
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_pragyapana
File Size63 MB
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