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प्रमेययोतिका टीका प्र. ३. उ. ३. सू. ९० मनुष्यक्षेत्र निरूपणम्
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य होंति एक्केकर पिse || ५|| छावट्टी पिडगाई महागहाणं तु मणुयलोगंमि । छावत्तरं गहसयं च होइ एक्ककए पिडए ॥ ६ ॥ चत्तारिय पंतीयो चंदाइच्चाण मनुयलोगंमि । छावट्टिय छावट्टिय होइ य एक्केकया पंती ॥७॥ छप्पन्नं पंतीयो नक्खताणं तु मनुयलोगंमि । छावट्टी छावट्टी हवइ य एक्केकया पंती ॥८॥ छावत्तरं गहाणं पंतिस होइ मणुयलोगंमि । छावट्टी छावट्टी य होइ एक्केक्किया पंती ||९|| ते मेरु परियडता पयाहिणावत मंडला सव्वे | अणवट्टिय जोगेहिं चंदा सुरा गहगणा य ॥१०॥ नक्खचतारगाणं अवट्टिया मंडला मुणेयव्वा । ते वि य पयाहिणात्तमेत्र मेरुं अणुचरंति ॥ १॥ स्यणियरदिणयराणं उड्डेव अहेब संकमो नत्थि । मंडल संकमणं पुणअभितर बाहिरंतिरिए ||१२|| स्यणियर दिणयराणं नक्खताणं महग्गहाणं च । चार विसेसेण भवे सुहदुक्ख विही मस्साणं ॥ १३ ॥ तेसिं पविसंताणं तावत्रखेत्तं तु वडूए नियमा । तेणेव कमेण पुणो परिहायइ निक्खमंताणं ||१४|| तेसिं कलंबुया पुष्कसंठिया होइ तात्र खेत्तपहा । अंतो य संकुया बाहि वित्थडा चंदसूरगणा ॥१५॥ केणं वढइ चंदो परिहाणी केण होइ चंदस्स । कालो वा जोहो वा केणाऽणुभावेण चंदस्त ||१६|| किन्हं राहु विमाणं निच्चं चंदेण होइ अविरहियं । चउरंगुलमत्पत्तं हिट्टा चंदस्स तं चरइ ॥१७॥ वावहिं यावट्टि दिवसे दिवसे उ सुक्क पक्खस्स । जं परिवढइ चंदो खवेइ तं चेव काले || १८ || पन्नरसइ भागेण य चंदं पन्नरस मेव तं वरइ । पन्नरसइ भागेण य पुणो वि तं चैव तिक्कमइ ॥१९॥ एवं वड्ड चंदो परिहाणी एव होइ चंदस्स । कालो वा जोव्हा वा तेणाणुभावेण चंदस्स ॥ २० ॥ अंतो मगुस्सखे ते हवंति चारोवगा य