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________________ - प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.९५ धातकीखण्डनिरूपणम् दोण्हवि वण्णओ' स खलु धातकीखण्डः सर्वदिग्विदिक्षु एकैकवनषण्डपनवेदिकाभ्यां संपरिवेष्टितः अनयो रुभयो वर्णनमत्र । 'दीवसमिया परिक्खेवणं' द्वीपसमितः परिक्षेपेण-द्वीपप्रमाणानुरूपमुभयोवर्णनमिति विवेकः । 'धायइसंडस्स पं मंते ! दीवस्स कइ दारा पन्नत्ता' धातकीखण्डद्वीपद्वाराणि कियन्ति खलु भदन्त ! भगवानाह-'गोयमा चत्तारि दारा पन्नत्ता-विजए-वेजयंते-जयंतेअपराजिए' हे गौतम ! विजय-वैजयन्त-जयन्ताऽपराजितानि चत्वारि पूर्वाधुत्तरान्तानि प्रथितानि । 'कहि णं भंते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पन्नत्ते-गोयमा ? धायइसंड पुरथिमपेरंते कालोदसमुद्द पुरस्थिमद्धस्स पञ्चत्थिमेणं से णं एगाए पउमवरवेदियाए एगेणं वणसंडेणं सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते' दोण्हवि वण्णओ' यह धातकी खण्ड चारों ओर से एकवनड से और एक पद्मवरवेदिका से घिरा हुआ है, इन दोनों का वर्णन यहां पर पूर्व में जैसा इनका वर्णन किया गया है वैसा ही कर लेना चाहिये 'दीय समिया परिक्खेवेणं' इन दोनों का परिक्षेप द्वीप प्रमाण के अनुरूप है 'धायइसंडस्स णं भंते ! दीवस्स कइ दारा पन्नत्ता' हे भदन्त ! धातकीखंड द्वीप के कितने द्वार कहे गये हैं ? 'गोयमा! चत्तारि दारा पण्णत्ता' हे गौतम ! धातकी. खंडद्वीप के चार द्वार कहे गये हैं । 'तं जहा' जो इस प्रकार से हैं 'विजए, वेजयंते, जयंते, अपराजिए' बिजय वैजयन्त जयन्त और अपराजित 'कहिणं भंते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पन्नत्ते' हे भदन्त ! धातकीखंड द्वीप का विजय नामका द्वार कहां पर है ? 'गोयमा ! धायइसंड पुरथिमपेरंते' हे गौतम ! धातकीखण्ड ___'सेणं एगाए पउमवरवेदियोए एगेणं वणसंडेण सव्वओ समंता संपरिक्खित्ते વોટ્ટ વિ Tvorો આ ધાતકીખંડ ચારે બાજુએ એક વનખંડ અને એક પદ્મવર વેદિકાથી ઘેરાયેલ છે. એ વનખંડ અને પાવર વેદિકાનું વર્ણન અહીંયાં पडेलभ तमनु वा न ४२वामा मावस छे. माशते ४० . 'दीवसमिया परिक्खेवेणं' गन्नेना परिसपी५ प्रमाणुनी भ०४ छ. 'धाइयसंडस्स ण भंते ! दीवस्स कइ दारा पण्णत्ता' सान् धातहीदीपना enा ४ा छ ? 'गोयमा ! चत्तारि दारा पन्नत्ता' गौतम! धातही दीयना यार बारी ४ पामा सामेल छे. 'तं जहा' २ मा प्रभारी छे. 'विजए, वेजयते, जयते, अपराजिए' विनय वैश्यन्त न्यन्त भने २५५२d 'कहि णं भंते ! धायइसंडस्स दीवस्स विजए णामं दारे पण्णत्ते' मगवन् घाती' दीपनु विन्य नामनु ६२ या मावस छ ? 'गोयमा ! धायइसंडपुरथिमपेरते' हे गौतम ! पाती
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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