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________________ → 2 जीवाभिगमसूत्रे लवणो जंबूद्वीपं न वाधते । 'चुल्लहिमवंत सिहरे चासहरपन्त्रए देवया मह डिया तेसि णं पणिहाए०' क्षुल्लहिमवत् शिखरिणो वर्षधरपर्वतयो देवता महजिंका: ० वसन्ति, तत्प्रणिधानेन प्रभावेण लवणो जम्बुद्वीपं न वाघते । 'हेमवतेरण्णवसु वासेषु मणुया पगइभदगा जाव०' हैमवतहैरण्यवतो वर्पयो मनुजाः प्रकृतिभद्राः यावद् विनीताः परिवसन्ति तत्प्रणिधानेन लवणो न वाघते० । 'रोहितंस सुवण्णकूळरुप्प कूलानु सलिला देवयाओ महड़ियाओ तासिं पणिहा ० ' रोहितांश - सुवर्ण कूल रूप्यकूलासु सलिलासु नदीषु महर्द्धिकाः देवताः परिवसन्ति तत्प्रभावाज्जम्धुं न बाधते लवणः । ' सदावाइ विडावाइ वट्टवेयडू पव्वसु देवा महिडिया जान पलिओचमद्विईया परिवसंति' शब्दापाति विकटापाति वृत्तवैताढ्यपर्वतयोः (तयोः) मध्ये महर्द्धिकाः ० यावत्पल्योपम स्थितिमन्तो देवाः परिवसन्ति तत्प्रणिधानेन० | 'महाहिमवंत रुप्पिस वासहरपन्वसु देवा महड्डिया जाब पलिओबमठिईया ० ' महाहिमवत् रुक्मिवर्पधरपर्वतयो मध्ये च महसे लवणसमुद्र जम्बूद्वीप को पीडित आदि नहीं करता है 'चुल्लहिमवंतसिहरेसु वासहरपव्वसु देवा महिड्डिया तेसिणं पणिहाए० हेमवतेरण्णवतेसु वासेसु मणुया पगइभद्दगा जाव० ' इन सूत्रों का अर्थ ऊपर भावरूप में प्रकट कर दिया है 'रोहितंससुवण्ण कूलरूप्पकू ला सलिलासु देवयाओ महिड्डियाओ तासि पणि० ' रोहितंसा, सुवर्णकूला एवं रूप्यकूला इन नदियों में जो महर्द्धिक आदि देव रहते हैं उन के प्रभाव से, 'सद्दावाद वियडावाह वहवेयडू पव्वतेसु देवा महिड्डिया जान पलिओ महिया परि० ' शब्दापाति विकटापाति वृत्तवैतादय पर्वतों पर जो महर्द्धिक आदि विशेषणों वाले देव रहते हैं उन के प्रभाव से 'महाहिमवंतरुप्पिसु वासहरपच्यतेसु देवा महिडिया जाव · पलिओ महिईया ' महाहिमवान् और रुक्मी पर्वतो पर जो महर्द्धिक वथी सवणु समुद्र भंद्रीयने पीडित विगेरे इश्ता नथी. 'चुल्ल हिमवंत सिहरेसु वासहरपव्त्रसु देवा महिद्रढिया तेसिणं पणिहाए० हेमवपरण्णवरसु वासेषु मणुया पगइमदया जाव०' मा मे सूत्रानो अर्थ उपर भाव ३ हेवामां आवे छे. 'रोहितंस सुवण्णकूलरूप्पकूलासु सलिलासु देवयाओ महिढियाओ तासि पणि० ' શહિત’સા, સુવર્ણકૂલા તથા રૂપ્ય ફૂલા આ નદીયામાં જે મહદ્ધિક વિગેરે દેવ रहे छे. तेना अलावथी 'सद्दावाति वियडावाति वट्टवेयड्ड पव्वतेसु देवा महिढिया जाव पलिओ मट्ठिइया परिवसंति' शब्दायाति, विष्टायाति, वृत्तवैताढ्य पर्वता पर भडद्धि विगेरे विशेषण वाणाने देवा रहे छे, तेखाना प्रलावधी 'महाहिमवंतरुप्पिसु वासहरपव्वसु देवा महढिया जाव पलिओ मट्ठिइया' भड्डाडिभवान्
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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