SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 649
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमेय पोति का टीका प्र.३ उ.३ पू. ९० धान की पण्डे सूपचन्द्र योवर्णनम् ६२९ तथैव सर्वं पूर्ववत् । ‘एवं पुरखरवरगाणं चंदाणं पुरक्खरवरस्स दीवस्स पुरस्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खग्समुदं बारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता चंद दीवा' कुत्र खल भदन्त ! पुष्करवरद्वीपगतचन्द्राणां पुष्करवरद्वीपा नाम द्वीपाः प्रज्ञप्ताः, भगवानाह-हे गौतम ! पुष्करवरगतानां चन्द्राणाम् पुष्करवरद्वीपपौरस्त्यवेदिकान्तात्, पुष्करोदसमुद्रस्तं द्वादशयोजनसहस्राण्यवगाद्याऽत्र चन्द्रद्वीपा नाम द्वीपाः वक्तव्याः, 'अण्णम्मि पुक्खरवरे दीवे रायहाणीओ तहेव' राजधान्याः स्वकीयद्वीपानां पश्चिमदिशि तिर्यगसंख्येयद्वीपसमुद्रान् व्यतिव्रज्याऽन्यपुष्करवरद्वीपे तथैव द्वादशयोजनसहस्राण्यवगाह्य० सर्व पूर्ववज्ज्ञातव्यम् । ‘एवं सूराण वि दीवा पुक्खरवरदीवस्स पञ्चस्थिमिल्लाओ वेइयंताओ पुक्खरोदं समुई वारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता तहेव सव्वं जाव रायहाणीओ दीविल्लगाणं दीवे समुद्दगाणं समुद्दे चेव एगाण अभितरपासे एगाणं वाहिरपासे रायहाणीओ रवरस्स दीवस्स पुरथिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरवरसमुई वारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता चंददीवा' इसी तरह से जब गौतम ने प्रभु से पूछा-हे भदन्त ! पुष्करवर द्वीपगत चन्द्रों के पुष्करवरद्वीप नामके द्वीप कहां पर हैं ? तब प्रभु ने गौतम से ऐसा कहा-हे गौतम ! पुष्करवरद्वीप के पौरस्त्य वेदिकान्त पुष्करवर समुद्र में बारह हजार योजन आगे जाने पर चन्द्रद्वीप हैं । 'अण्णंमि पुक्खरघरे दीवे रायहाणीओ तहेव' तथा अन्य पुष्कर वरद्वीप में उनकी राजधानियां हैं। इन राजधानियों के होने के सम्बन्ध में पहिले जैसा ही कथन कर लेना चाहिये 'एवं सूराण वि दीवा पुक्खरपरदीवस्ल पच्चस्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरोदं समुई वारसजोरणसहस्साई ओगा. हित्ता तहेव सव्वं जाब रायहाणीओ दिविल्लगाणं दीवे समुद्दगाणं पुवखरवरसमुई वारसजोयणसहस्साई ओगाहित्ता चंददीवा' को प्रमाणे न्यारे ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીએ એવું પૂછયું કે-હે ભગવન્ પુષ્કવર દ્વીપમાં આવેલ ચંદ્રોને પુષ્કરવર દીપ નામને દ્વીપ ક્યાં આવેલ છે? ત્યારે પ્રભુશ્રી એ તેના ઉત્તરમાં ગૌતમસ્વામીને કહ્યું કે-હે ગૌતમ! પુષ્કરવર દ્વીપના પિરસ્ય વેદિકાન્તથી પુષ્કરવર સમુદ્રમાં બાર હજાર જન આગળ જવાથી ચંદ્ર दी५ मावेस छ. 'अण्णमि पुक्खवरवरे दीवे रायहाणीओ तहेव' तथा अन्य પુષ્કર દ્વીપમાં તેની રાજધાની છે. આ રાજધાની હેવાના સંબંધમાં पसाना धन प्रभारीनु ४थन ४श . 'एवं सृराण वि दिवा पुग्वरवग्दीवान पच्चस्थिमिल्लाओ वेदियंताओ पुक्खरोदं समुह बारस जोयणसहस्साई ओगाहिता तद्देव सव्यं जाव रायहाणीओ दिविल्लगाणं दीवे सगुद्दगाणं समुहे चेव एगाण
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy