SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ ३ रु.५४ जंबूद्वीपद्वारसंख्यादि निरूपणम् ४५ इन्द्रकीलः गोमेयको रत्नविशेषस्तन्मय इन्द्रकीलः, 'लोहितक्खमईओ दारचेडीओ' लोहिताक्षरत्नमय्यौ द्वारचेटयौ द्वारशाखे 'जोतीरसमए उत्तरंगे' ज्योतीरसमयमुत्तरङ्गम् द्वारस्योपरि तिर्यग् व्यवस्थितं काष्ठम् 'वेरुलिया मया कवाडा' वैडूर्य्यरत्नमयौ कपाटौ, 'वइरामया संधी' वज्रमय्यः संधय सन्धिमेलाः फलकानाम्, वनरत्नापूरिताः फलकानां सन्धय इत्यर्थः 'लोहितक्खमइओ सूइओ' लोहिताक्षरत्नात्मिकाः सूचयः फलकद्वयसम्बन्ध विधनाभावहेतुपादुकास्थानीयाः, 'णाणामणिमया समुग्गया' नानाणिमयाः समुद्काः, समुद्का इव समुद्काः सूतिकागृहाणि तानि नानामणिमयानि "वइरामईओ अग्गलाओ अग्गलपासाया' वज्ररत्नमय्योऽर्गला अर्गलाप्रासादाः, तत्र अर्गलालोकप्रसिद्धा इदकीले' गोमेद रत्न का इसका इन्द्रकील बना हुआ है 'लोहितक्खमईओ दारचेडीओ' लोहिताक्षरत्न की इसकी द्वार शाखाएं बनी हुई है। 'जोइरसाभए उत्तरंगे' इसका उत्तरंग द्वार के ऊपर तिर्यग् रूप से रखा हुआ काष्ठ-ज्योतीरस रत्न का बना हुआ है 'वेरुलियामया कवाडा' इस द्वार के किवाडवैडूर्यरत्न के बने हुए है । 'वरामया संधी' इन किवाडों की संधिया वज्ररत्न की हैं। अर्थात् इन किवाडों के पटियों की जो संधिया है वे वज्ररत्न की हैं । अर्थात् इन किवाडों के पटियों की जो संधियां है वे वज्ररत्न से भरी हुई हैं । 'लोहितक्खमइओ सूईओ' किवाडों के दोनों पटियों को आपस में विवटित न होने देने में कारण भूत पादुका के स्थानापन्न सूचियां-कीले लोहिताक्ष रत्न की बनी हुई है। 'णाणामणिमया समुग्गया' समुद्क की तरह समुद्गक-सूतिका गृह-नानामणियों के बने हुए है। 'वयरामईओ अग्गलाओ' अर्गला वज्ररत्नकीबनी हुई है । 'अग्गलपासाया' अर्गला प्रासाद्-अर्गलाओं के तेनाद्रीय गोमेद रत्ननो मने छ. 'लोहितक्खमईओ दारचेडीओ' ashक्ष रत्ननी तनी २ मामे। मनेस छ. जोइरसामए उत्तरंगे' तेनु ઉત્તરંગ અર્થાત્ દ્વારની ઉપર તિર્ણ રાખવામાં આવેલ કાષ્ઠ તીરસ રત્નનું भने छ. 'वेरुलियामया कवाडा' ते दाना घg सु४२ ४भा वैय २.नना मनेर छे. 'वहरामया संधी' से ४मान साधान मा ०१२ બનેલ છે. અર્થાત્ એ કમાડના પાટિયાના સાંધાને જે ભાગ છે, તે વજ रत्नथी पूरेस छ. 'लोहितक्खमईओ सूईओ' मान मन्ने पाटिया योन એક બીજાથી જુદા ન પડવા દેવાના કારણ રૂપ તેમાં જે સૂચિ ખીલા वाम मावस छेते सोडिताक्षर २त्नाना मानेर छ. 'णाणामणिमया समुग्गया' समु४ सूतिड। भने प्रा२ना भागुयाना मने छे. 'वइरामईओ अग्ग
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy