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________________ जीवामिगमसूत्र पेढियाओ दो जोयणाई जाव सीहासणा सपरिवारा भाणियव्या' तद्वहुसमरमणीयभूमिभागस्य बहुमध्यदेशभागे महत्येका मणिपीटिका, सा चाऽऽयामविष्कम्भाभ्यां वे योजने तदुपरिदिक्षु सामानिकयोग्य भद्रासनानि, चतस्रग्रमहिपीसप्ताऽनीकाधिपति-पोडशात्मरक्षकदेवसहस्र योग्य भद्रासनानि भणितव्यानि । 'तहेव अट्ठो' तथैवाऽर्थः, नामाभिधानचिन्तायाम्-'गोरमा ! बहुमु खुल्हासु खुड्डियासु बहूई उप्पलाई चंदवण्णाभाई-चंदा एत्थ देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्टिईया परिवति' भगवानाह-गौतम ! बढी क्षुद्रा-क्षुल्लिका वापीमु यावद्विलपक्तिकासु बहत्पल-कुमुद-पद्म-पुण्डरीक-महापुण्डरीक-शत-सहस्रसणा सपरिवारा भाणियब्वा तहेच अट्टो' उस वहुसमरमणीय भूमिभाग के बीच में रहे हुये प्रासादावतंसक के ठीक मध्य भाग में एक मणिपीठिका है उस की लम्बाई चौडाई दो योजन की है इस पर एक सिंहासन है इस की चारों ओर सामानिक देवों के योग्य भद्रासन हैं। यहां चार अग्रमहि षियों के सात अनीकाधिपतियों के १६ हजार आत्मरक्षक देवों के भद्रासनों का भी वर्णन कर लेना चाहिये इन चन्द्रद्वीपों का यह नाम अनादि निधन है इस सम्बन्ध में जैसा कथन पहिले किया गया है वैसा ही यहां पर भी कर लेना चाहिये हे भदन्त ! इन द्वीपों का नाम चन्द्रद्वीप ऐसा क्यों हुआ है ? तो इसका कारण प्रभ ने गौतम को ऐसा बतलाया है कि हे गौतम ! 'बहुसु खुड्डासु खुडियासु बहुई उप्पलाई चंदवण्णाभाई चंदा एत्थ देवा महिडिया जोव पलिओवमहिईया परिवसंति' इस द्वीप में जितनी भी छोटी वर्णन . 'वहुमज्झ० मणिपेढियाओ दो जोयणाई जाव सीहासणा सप. रिवारा भाणियब्बा तहेव अट्ठों को मसभरमणीय भूमिबागनी पयमा रडता પ્રાસાદાવાંસકની બરાબર મધ્યભાગમાં એક મણિપીઠિકા છે. તેની લંબાઈ પહોળાઇ એ જનની છે. તેના પર એક સિંહાસન છે. તેની ચારે બાજી સામાનિક દેને યેગ્ય ભદ્રાસને છે. અહીંયાં ચાર અમહિષિના, સાત અનીકાધિપતિના અને ૧૬ સેળ હજાર આત્મરક્ષક દેના ભદ્રાસનનું વર્ણન પણ કરી લેવું. આ ચંદ્ર દ્વિીપનું આ નામ અનાદિકાલીન છે. આ સંબંધમાં જેવું વર્ણન પહેલાં કરવામાં આવેલ છે, એ જ પ્રમાણેનું વર્ણન અહીંયાં પણ કરી લેવું. હે ભગવન્ આ દ્વિીપનું નામ ચંદ્ર દ્વીપ એ પ્રમાણનું કેમ કહેલ છે ? તે તેનું કારણ પ્રભુશ્રીએ ગૌતમસ્વામીને એ રીતે કહેલ - गौतम ! 'बहुसु खुड्डासु खुडियासु बहुई उप्पलाई चंदवण्णाभाई चंदा एत्य देवा महिड्ढिया जाव पलिओवमट्टिइया परिवसंति' मा दीपम नानी मोटी
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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