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________________ प्रमैयद्योतिका टीका प्र.३ उ.३ सू.५४ वनषण्डगत वाप्यादीनां वर्णनम् २९ तद्यथा 'हंसासगसंठिया' हंसासनसंस्थिताः, 'कोंचासणसंठिया' क्रौञ्चासनसंस्थिताः, 'गरुलासणसंठिया' गरुडासनसंस्थिताः, 'उण्णयासणसंठिया' उन्नतासनसंस्थिताः 'पणयासणसंठिया' प्रणतासनसंस्थियाः, 'दीहासणसंठिया' दीर्षासनसंस्थिताः, 'भदासणसंठिया' भद्रासनसंस्थिताः 'पक्खासणसंठिया' पक्ष्यासनसंस्थिताः 'मगरासणसंठिया' मकरासनसंस्थिताः 'उसभासणसंठिया' वृषभासनसंस्थिताः, 'सीहासणसंठिया' सिंहासनसंस्थिताः, 'पउमासणसंठिया' पद्मासनसंस्थिताः 'दिसासोवत्थियासणसंठिया' दिक्सौवस्तिमंडपों पर्यन्त के मंडपों में अनेक पृथिवी शिलापट्टक कहे गये हैतं जहा -हंसासण संठिया कोंचासण संठिया, गरुलासणसंठिया, उणयासणसंठिया' इनमें कितनेक पृथिवी शिलापट्टक ऐसे हैं। जो हंसासन के जैसे स्थित है कितनेक क्रोचासन के समान स्थित है कितनेक गरुडासन के समानस्थित है। कितनेक उन्नतासन के समान स्थित है कितनेक 'पणयासणसंठिया' प्रणतासन के समानस्थित है। 'भद्दासणसंठिया' कितनेक भद्रासन के समानस्थित है। 'पक्खासणसंठिया' कितनेक पक्ष्यासन के समानस्थित है। 'मगरासणसंठिया' कितनेक पृथिवीशिलापटक मकरासन के समानस्थित है, "उसभासणसंठिया' • कितनेक वृषभासन के समानस्थित है। "सीहासणसंठिया' कितनेक सिंहासन के जैसे स्थित है । 'पउमासणसंठिया' कितनेक पद्मासन के समानस्थित है। 'दीहासणसंठिया' कितनेक दीर्घासन के समानस्थित है। 'दिसासोवत्थियासणसंठिया' और कितनेक पृथिवीं शिलापट्टक શ્યામલતા મંડપ સુધીના મંડપમાં અનેક પૃથ્વી શિલા પદ્દકે કહેવામાં આવે१ छ. 'तं जहा हंसास गसंठिया कोंचासणसंठिया गरुलासणसंठिया उण्णयासणसंठिया' तेमा मा पृथ्वी शिक्षा सासनानी २१ छ. मन मा કચાસનની જેમ રહેલા છે. કેટલાક ગરૂડાસનની માફક રહેલા છે. કેટલાક ઉન્નત सासननी स२॥ २९सा छे. 'पणयासणसंठिया' डेटा प्रशुतासन समान रसा छ. 'भदासणसंठिया' भने सा४ मद्रासननी सभ स्थित छ. 'पक्खासणसंठिया' टेटस पक्ष्यासननी रम स्थित छ. 'मगरासणमंठिया' मा पृथ्वी शिक्षा पट्टी भ४२रासनानी मा३४ मावेला छ. 'उसमासणसंठिया' या वृषमासनानी भ स्थित छ. 'सीहासणसंठिया' ८८४ सिसोनी म स्थित रहे। छ.. 'पउमासणसंठिया' उटसा पद्मासनानी रेभ स्थित-२सा छ: 'दीहासणसठिया' सावीसनानी मा४ स्थित-२॥ छे. 'दिसासोवात्थयासणसंठिया' भने કેટલાક પૃથ્વીશીલા પટ્ટકે દિશા સોવસ્તિકાસનની માફક સ્થિત રહેલા છે.
SR No.009337
Book TitleJivajivabhigamsutra Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1974
Total Pages1588
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_jivajivabhigam
File Size117 MB
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